वह सुभाष थे : कविता ! Essay on Subhash Chandra Bose!
वह सुभाष थे ! (कविता : प्रहलाद परिहार ) प्राची में उगते सूरज की तरह, लाल चमकने वाले, वह सुभाष थे। योद्धाओं की नस नस में रक्त की तरह बहने वाले, वह सुभाष थे। राष्ट्र प्रेम में त्यागा पद, जा पहुंचे जापान जर्मनी । "में सुभाष बोल रहा हूं" कहने वाले, वह सुभाष थे। "तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हे आजादी दूंगा," कहने वाले। हम सब में रक्त बूंद की तरह रहने वाले, वह सुभाष थे । वे मरे नहीं, जिंदा हैं अब तक, हर राष्ट्र भक्त की आंखों में। नेताजी कहलाने का हक रखने वाले, वह सुभाष थे।। कविता के पीछे की कहानी : मैं पिछले सप्ताह सफर में था। अपने गंतव्य तक पहुँचने के लिए मुझे रात में दो ट्रैन बदलनी पड़ी। मेरी पहली ट्रैन सात बजे आने वाली थी जो दो घंटा देरी से आई। मैंने नागपुर के आगे के सफर के लिए रिजर्वेशन करा रखा था। टाइम टेबल के अनुसार दोनों रेलगाड़ियों बीच दो घंटे का अंतर था। परन्तु पहली ट्रैन के लेट होने से मैं संकट में आ गया था। मेरी ट्रैन रात पौने बारह बजे स्टेशन पहुंची। मेरे पास केवल पंद्रह मिनट शेष थे। मैं जल्दी से स्टेशन के बाहर निकला और एक...