राष्ट्रीय युवा दिवस/योग दिवस : (Swami Vivekanand ) निबंध

12th January Birthday Special

National Youth Day स्वामी  विवेकानंद सिस्टर  क्रिस्टीन के विचार !  

                       सिस्टर क्रिस्टीन, जिनका जन्म 17 अगस्त 1866 में तथा मृत्यु 27 मार्च 1930 में हुआ था, एक स्कूल टीचर थीं और स्वामी विवेकानंद की परम मित्र तथा शिष्या थीं।  24 फरवरी 1894 में डेट्रॉइट अमेरिका में पहली बार उन्होंने स्वामी विवेकानंद का व्याख्यान सुना था।  उनसे प्रभावित होकर 1902 में वे भारत आईं और यहाँ एक स्कूल शिक्षिका और समाज सेविका के रूप में उन्होंने काम आरम्भ किया। 1911 में भगिनी निवेदिता की मृत्यु के बाद उन्होंने ''निवेदिता गर्ल्स स्कूल'' का प्रभार संभाला था। कुछ लोग मानते हैं कि स्वामीजी उन्हें अपनी बेटी मानते थे। सन् 1991 में रामकृष्ण मठ, नागपुर द्वारा प्रकाशित ''विवेकानंद साहित्य संचयन''  की प्रस्तावना में स्वामीजी के बारे में  उनके जो विचार उल्लेखित हैं, वही में यहां प्रस्तुत कर रहा हूं  ...   

                

      कभी कभी समय की दीर्घ अवधि  के बाद एक ऐसा मनुष्य हमारे इस ग्रह में आ  पहुँचता है, जो असंदिग्ध रूप से दूसरे किसी मंडल से आया हुआ एक पर्यटक होता है, जो उस अति दूरवर्ती क्षेत्र की, जहाँ से वह आया हुआ है , महिमा , शक्ति  और दीप्ती का कुछ अंश इस दुखपूर्ण संसार में लाता है।  वह मनुष्यों के बीच विचरता है, लेकिन वह इस मृत्यु भूमि का नहीं होता है। वह है एक तीर्थयात्री, एक अजनबी - वह केवल एक रात के लिए ही यहाँ ठहरता है। 
                       वह अपने चारो ओर के मनुष्यों के जीवन से अपने को सम्बद्ध पाता  है , उनके हर्ष विषाद का साथी बनता है , उनके साथ सुखी होता है , उनके साथ दुखी होता है , लेकिन इन सबों के बीच , वह यह कभी नहीं भूलता कि वह कौन है , कहाँ से आया है और उसके यहाँ आने का क्या उद्देश्य है।  वह कभी अपने दिव्यत्व  को नहीं भूलता।वह सदैव याद रखता है कि वह महान, तेजस्वी एवं महामहिमान्वित आत्मा है।  वह जनता है कि वह उस वर्णनातीत स्वर्गीय क्षेत्र से आया है, जहाँ सूर्य अथवा चंद्र की आवश्यकता नहीं है , क्योंकि वह क्षेत्र आलोकों के आलोक से आलोकित है। वह जनता है कि जब ईश्वर की सभी संतानें एक साथ आनंद के लिए गान कर रही थी , उस समय से बहुत पूर्व ही उसका अस्तित्व था। 
                        एक ऐसे मनुष्य को मैंने देखा , उसकी वाणी सुनी और उसके प्रति अपनी श्रृद्धा अर्पित की। उसीके चरणों में मैंने अपनी आत्मा की अनुरक्ति निवेदित की। 
                        इस प्रकार का मनुष्य सभी तुलना से परे है , क्योंकि वह समस्त साधारण मापदंडों और आदर्शों के अतीत है। अन्य लोग तेजस्वी हो  सकते हैं , लेकिन उसका मन प्रकाशमय है , क्योंकि वह समस्त ज्ञान के स्रोत के साथ अपना संयोग स्थापित करने में समर्थ है। साधारण मनुष्यों की भांति वह ज्ञानार्जन की मंथर प्रक्रियाओं द्वारा सीमित नहीं है। अन्य लोग शायद महान हो सकते हैं , लेकिन यह महत्त्व उनके अपने वर्ग के दूसरे लोगों की तुलना में ही संभव है।  अन्य मनुष्य अपने साथियों की तुलना में साधू, तेजस्वी, प्रतिभावान हो सकते हैं, पर यह सब केवल तुलना की बात है।  एक संत साधारण मनुष्य से अधिक पवित्र, अधिक पुण्यवान, अधिक एकनिष्ठ है।  किन्तु स्वामी विवेकनन्द के सम्बन्ध में कोई तुलना नहीं हो सकती।  वे स्वयं ही अपने वर्ग के हैं। वे एक दूसरे स्तर के हैं , न कि  इस सांसारिक स्तर के। वे एक भास्वर सत्ता हैं, जो एक सुनिर्दिष्ट प्रयोजन के लिए दूसरे एक उच्चतर मंडल से इस मृत्युलोक पर अवतरित हुए हैं।  कोई शायद जान सकता था कि  वे यहाँ पर दीर्घ काल तक नहीं ठहरेंगे। 
                        इसमें क्या आश्चर्य है कि प्रकृति स्वयं ऐसे मनुष्य के जन्म पर आनंद मनाती है , स्वर्ग के द्वार खुल जाते हैं और देवदूत कीर्तिगान करते हैं ?
                        धन्य है वह देश जिसने उनको जन्म दिया है। धन्य हैं वे मनुष्य, जो उस वक्त पृथ्वी पर जीवित थे, और धन्य हैं वे कुछ लोग - धन्य , धन्य, धन्य - जिन्हें उनके चरणों में बैठने का सौभाग्य मिला।

                                प्रस्तुति : प्रहलाद परिहार 


  राष्ट्रीय युवा दिवस एवं योग दिवस !  

                        यह दिन स्वामी विवेकानंद जी के जन्म दिन को समर्पित है। भारत सरकार ने सन 1984 में स्वामीजी के जन्म दिन को राष्ट्रीय युवा दिवस घोषित कर दिया था । इस दिन स्कूलों में योग दिवस भी मनाया जाता है।   स्वामी जी का जन्म 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता के एक कुलीन बंगाली परिवार  में हुआ था।  उनका बचपन का नाम 'नरेन्द्रनाथ दत्त था। उनके आध्यात्मिक गुरु रामकृष्ण परमहंस जी थे। जब उन्होंने शिकागो (अमेरिका) धर्म संसद में 11  सितम्बर 1893 को अपना प्रसिद्ध भाषण दिया तब से उनकी ख्याति पूरी दुनिया में सूरज की तरह फ़ैल गयी। उनकी मृत्यु 4 जुलाई 1902 को 39 वर्ष की आयु में बेलुड़ मठ में  हुई थी।          

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