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6. काव्यगाथा ऑनलाइन पाक्षिक पत्रिका / Kavygatha 16/0723

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6. काव्यगाथा पाक्षिक पत्रिका Kavygatha Fortnight Magazine 16 /07/23 काव्यगाथा ऑनलाइन पाक्षिक पत्रिका क्या है?                 यह हर पंद्रह दिन में यानी हर माह की 15 एवं 30 तारीख को प्रकाशित होने वाली ऑनलाइन पाक्षिक पत्रिका है। जिसकी सामग्री लिखित, फोटो, एवं वीडियो, के रूप में पब्लिश की जाती है। इसे दुनियां में कहीं भी  google  या  blogger  या  chrome  पर खोला जा सकता है, भेजा जा सकता है और पढ़ा जा सकता है। यह स्थाई रूप से ब्लॉग पर मौजूद रहती है आप जब चाहें इसे देख पढ़ सकते हैं और दूसरों को भी पढ़वा सकते हैं।  यदि आप इस ऑनलाइन पत्रिका के सदस्य बनते हैं तो आपका वीडियो फ्री में हमारे इसी नाम के यू ट्यूब चैनल पर भी पब्लिश किया जा सकेगा।  पत्रिका से जुड़ने के लिए संपर्क करें -  09977577255 पत्रिका की सदस्यता के लाभ :   1. रचनाकार इसमें साल भर में 24 बार (हर अंक में) अपनी रचनाएं छपवा सकते हैं, और एक क्लिक से दुनिया में कही भी शेयर कर सकते हैं। 2. कलाकार, सौंदर्य विशेषज्ञ, या अन्य कोई ...

मैं क्या हूं? : कविता / आशा ! Kavygatha Online Magazine 15/04/23

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काव्यगाथा ऑनलाइन मैगज़ीन  15  / 04 / 23  22. मैं क्या हूँ ? कविता : आशा मत पूछ मुझसे ये ज़िंदगी कि मैं क्या हूँ , समय के द्वारा लिखी हुई, उलझी हुई दास्तान हूँ।  तेरे साथ भी अकेली हूँ, तेरे बाद भी अकेली हूँ, तुझे समझ कर भी न बूझ सकी, ऐसी पहेली हूँ।  तमाशाई सी ये ज़िंदगी, जिसकी मैं खुद दर्शक हूँ, अपनी तकलीफों की, खुद ही चिकित्सक हूँ।  दर्द की ख्वाहिश हूँ, खुद की नुमाईश हूँ, बेजार सी है ज़िंदगी, जिसकी मैं फरमाईश हूँ।  अधूरी इमारतों का, जैसे कोई खँडहर हूँ, नाकाम इरादों का, घूमता हुआ बवंडर हूँ।  एक राज हूँ, एक साज हूँ, बदला हुआ अंदाज़ हूँ, जो गीत कभी सुना नहीं, मैं उसकी आवाज़ हूँ।  मत पूछ मुझसे ये ज़िंदगी कि मैं क्या हूँ, समय के द्वारा लिखी हुई, उलझी हुई दास्तान हूँ।   21.  ख्वाहिश !   कविता : पलक साबले, जबलपुर / बैतूल  हर शख्श की ख्वाहिश मुकम्मल हो जाती, तो क्या बात होती , ग़रीब के घर भी दौलत बेशुमार हो जाती, न आँखों में कभी नमी होती, न मुस्कराहट में कोई कमी होती।  घर में नयी किलकारी गुंजी,  माँ की आँखों में नमी थी...