सांझ को पंछी घर आता है ! (Meri Nai kavitayen!)
मेरी नई कविताएं : प्रहलाद परिहार 10. सांझ को पंछी घर आता है! (04/05/23) बड़ा नादान था, दिन भर उड़ता फिरा, कभी इस बाम पर, कभी उस बाम पर। उसे क्या पता था, एक दिन थक जाएगा, आज तरस आता है मुझे उसके हाल पर। घर बसाया जिसके साथ, अधूरा सा रहा, खूब उड़ा, जीवन भर, ऊंचे आसमान पर। जो सुबह के साथी थे, दोपहर को विदा हुए, अब यादें ही यादें हैं, इस मकाम पर। अब जो शेष और साथ हैं उनको, वह देना चाहता है, प्यार आसमान भर। "हर" सांझ को पंछी घर आता है, उसे मालूम है, कल निकलना है अंजाम पर। 9. खूबसूरत खंजर! वो क्या जाने इश्क किसे कहते हैं, कैसे दो दिल एक दिल में रहते हैं। मैंने जाना है, प्यार के लिए जहान छोटा है, इक बूंद, एक सागर से कहीं कुछ होता है। ये फूल, ये कविताएं, ये नज्में, ये गजलें, ये सब इनायत है उसी प्यार की पगले। उसको मिलने से पहले, ये मंजर कभी न था, शायरी का ये खूबसूरत खंजर कभी न था। 8. आँख लगते ही! ( कविता : प्रहलाद परिहार) छम् से बरस जाती है तेरी याद, और दे जाती है एक नई कविता की सौगात! एक झरना सा बहता है तेरी यादों का, और बहती हैं कविताएं उन्हीं यादों में। बार बार सोता हूं बार बार उठ...