6. काव्यगाथा ऑनलाइन पाक्षिक पत्रिका / Kavygatha 16/0723

6. काव्यगाथा पाक्षिक पत्रिका Kavygatha Fortnight Magazine 16 /07/23

काव्यगाथा ऑनलाइन पाक्षिक पत्रिका क्या है?

                यह हर पंद्रह दिन में यानी हर माह की 15 एवं 30 तारीख को प्रकाशित होने वाली ऑनलाइन पाक्षिक पत्रिका है। जिसकी सामग्री लिखित, फोटो, एवं वीडियो, के रूप में पब्लिश की जाती है। इसे दुनियां में कहीं भी google या blogger या chrome पर खोला जा सकता है, भेजा जा सकता है और पढ़ा जा सकता है। यह स्थाई रूप से ब्लॉग पर मौजूद रहती है आप जब चाहें इसे देख पढ़ सकते हैं और दूसरों को भी पढ़वा सकते हैं। यदि आप इस ऑनलाइन पत्रिका के सदस्य बनते हैं तो आपका वीडियो फ्री में हमारे इसी नाम के यू ट्यूब चैनल पर भी पब्लिश किया जा सकेगा। पत्रिका से जुड़ने के लिए संपर्क करें - 09977577255

पत्रिका की सदस्यता के लाभ : 

1. रचनाकार इसमें साल भर में 24 बार (हर अंक में) अपनी रचनाएं छपवा सकते हैं, और एक क्लिक से दुनिया में कही भी शेयर कर सकते हैं।

2. कलाकार, सौंदर्य विशेषज्ञ, या अन्य कोई प्रोफेशनल इसमें अपने कार्य संबंधी लेख लिख सकते हैं, अपना साक्षात्कार छपवा सकते हैं (वीडियो भी बनवा सकते हैं), जिससे उनके संपर्क का दायरा विश्वस्तरीय होगा और उन्हें ज्यादा से ज्यादा काम मिलेगा।

3. साथ ही जो लोग अपनी इंग्लिश इंप्रूव करना चाहते हैं या लिखना, पढ़ना एवं बोलना सीखना चाहते हैं उनके लिए इसमें नियमित रूप से सामग्री एवं वीडियो पब्लिश किए जाते हैं।

4. उपरोक्त सभी तरह के लोग इसके सदस्य बन सकते हैं एवं फोन के द्वारा या व्हाट्स ऐप के माध्यम से संपादक से सीधे संपर्क कर सकते हैं। धन्यवाद!

5. इस तरह से हमारा एक संगठन बन जायेगा और हम सभी सदस्य मिलकर साल में तीन-चार बार काव्य गोष्ठियों का आयोजन भी कर सकते हैं। 



सम्पादकीय 

दुनियाँ में क्या उपद्रव हो रहे हैं जरा गौर कीजिये !

            दोस्तों, हम आज जिसे भारत कहते हैं यह इतना सा भू भाग नहीं था। कभी अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश, म्यांमार, कम्बोडिया और बहुत सारे देशों में एक ही धर्म प्रचलित था और वह था सनातन धर्म। संसार का सबसे सुन्दर विचार जो वसुधैव कुटुम्बकम की बात करता है। सारे संसार को एक कुटुंब मानता है वह हमारे वेदों का विचार है।  जो लोग आज हमारे पूर्वजों के दुर्व्यवहार की बातों को लेकर धर्म के विमुख होना चाहते हैं उनको मैं बता दूँ कि यदि आप सनातनी नहीं रहे तो दो प्रमुख पंथ हैं दुनिया में जो आपको नास्तिक भी नहीं रहने देंगे और आपको मजबूर करेंगे कि आप धर्मान्तरित हो जाएँ और उनके जैसे हो जाएँ अन्यथा वो आपको जीने नहीं देंगे। इनकी हकीकत आज पड़ोसी देशों और जहाँ जहाँ ये गए हैं वे लोग अच्छी तरह देख रहे हैं। जरा आँख खोलकर देखो दुनियां में जहाँ भी आग लगी है उसकी जड़ में यही लोग हैं। 

                     हमारे देश का उत्तर - पूर्व भाग, केरल, कश्मीर, पश्चिम बंगाल और कुछ अन्य क्षेत्रों में आज जो हो रहा है क्या आप वही सब अन्य क्षेत्रों में होता देखना चाहते हैं यदि नहीं तो जागिये और अपने विचारों को अन्य सो रहे लोगों तक पहुचाइए। 1990 में कश्मीर में जो हुआ वह भूलने वाली बात नहीं है। कब तक हम शुतुरमुर्ग बने रहेंगे? चुप रहने या हमारे कुछ तथाकथित महान नेताओं की तरह एक तरफ़ा सेक्युलरवाद का डंका पीटने से आप बच नहीं पाओगे। सच को सच कहना होगा।  एक बार नहीं बार-बार सम्पूर्ण अवतार योगेश्वर श्रीकृष्ण की गीता को अर्थ सहित पढ़ें और अपनी संतानों को भी इसे पढ़ने के लिए प्रेरित करें। उनके बारे में फैलाई गयी बकवास पर यकीन न करें जो कुछ लोगों ने अपने पेट पालन के लिए बनाई हैं। बाबा साहब आंबेडकर की किताब ''भारत अथवा पाकिस्तान का विभाजन '' अवश्य पढ़ें। उन्होंने जिस तरह के बटवारे की वकालत की थी यदि वह हो गया रहता तो आज हम और विकास कर गए रहते। अन्य धर्मों के लोगों से भी मेरी गुज़ारिश है कि वे अपनी किताबें अर्थ सहित जरूर पढ़ें और मैं तो कहता हूँ कि आप सभी गीता, कुरान और बाइबिल को अपनी भाषा यानि हिंदी में पढ़ कर देखें उसके अर्थ को समझें कम से कम कोई किसी को धोखा तो नहीं दे पायेगा। 

                        वेद की सहीं व्याख्या पढ़िए। स्वामी दयानन्द सरस्वती की लिखी किताब ''सत्यार्थ प्रकाश'' पढ़िए। दुष्ट लोगों या कम बुद्धि लोगों की किताबें पढ़कर अपने ही भाइयों से बैर मत पालिये। वेद का समाज कर्मों  के आधार पर बटा हुआ था न कि जन्म के आधार पर। बाद में षड्यंत्र करके कुछ लोगों ने गलत व्याख्या लिखी जिसकी दुहाई देकर कुछ लोग भाई को भाई से अलग करने में लगे हैं। वे समाज में फूट डालो और राज करो की निति अपनाकर अपनी नेतागिरी करना चाहते हैं। ऐसे लोग कल दुष्टों का शिकार होने के लिए आपको अकेला छोड़ देंगे। अब सारे लोग एकदम से तो नहीं सुधर सकते। फिर भी आज हम बुरे लोगों का विरोध करते हैं। उन्हें हमारी सरकार भी उचित दंड देती है। महर्षि बाल्मीकि, संत कबीर, संत रैदास आदि महान संतों का जन्म तथाकथित उच्च कुल में नहीं हुआ था फिर भी वे हमारे पूजनीय हैं। यदि हमारे ग्रंथों में कुछ कल्पना भी है और वह समाज की बेहतरी के लिए है तो उसे अपनाएं। अन्य धर्मों में कितनी गज़ब की कल्पना और अवैज्ञानिक बातें लिखी हैं जब आप उन्हें पढोगे तो समझ जाओगे। हमारे लोग तो ग्रंथो की आलोचनाओं को भी अपनी तर्क की कसौटी पर कसते हैं, अन्य पंथों के लोगों की तरह सड़क पर उतरकर देश को जलाने का काम नहीं करते। यह सब हम ही कर सकते हैं वो लोग नहीं।  उनके लिए तो संगीत हराम, वे पुस्तकालय जलाने में विश्वास रखते हैं, वे स्त्री को भोग की वस्तु समझते हैं, उसे जबरदस्त परदे में रखना चाहते हैं। दुनिया की हर सुन्दर चीज में उन्हें काम वासना नज़र आती है। क्या आप उनके जैसा बनना चाहते हैं ? हमारे ऋषि तुल्य बाबा साहेब, स्वामी विवेकानद और महान वैज्ञानिक अब्दुल कलाम को नमन करते हुए मैं अपनी बात समाप्त करता हूँ। ईश्वर आप सबको खुश रखे ! 

आपका मित्र : प्रहलाद परिहार !                                

                            

"Kavygatha" Magazine Pattern

1. Editorial संपादकीय

2. Index अनुक्रमणिका

3. Poems, stories, articles कविता, कहानी, लेख 

4. Let's Learn English आओ इंग्लिश सीखें

     a. Grammar

      b. Speaking

      c. Vocabularies

      d. Test Yourself

      e. Answer of Last TY

5. Your Letters (comments) आपके पत्र 

पिछली पत्रिका पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें : 

१. काव्य गाथा १५ मई २०२३

२. काव्य गाथा ३०/०४/२३

3काव्यगाथा 30/05/23

4. kavygatha 15/06/23

5. kavygatha 30/06/23

अनुक्रमणिका

1. दिव्या अड़लक  : सीमा अपनी अपनी !

2. धर्मेंद्र खौसे  : बाकी सब ठीक है !

3. आशा ''अंकनी '' : कठिनाइयों का दौर !

4. महेंद्र गुदवारे  :  नाले का अतिक्रमण !

5. पलक साबले  : कहीं ख़ुशी कहीं ग़म !

6. विजय पटैया  : वही बन गया गीत !

7. अनुराधा देशमुख  : महंगा टमाटर !

8. लक्ष्मण खंडाग्रे  : लफ्ज़ !

9. अरुणा पाटनकर  : रक्षा बंधन !

१०. दीपा मालवीय  :  हमारा परिवार!

11. Let's Learn English आओ अंग्रजी सीखें ! 

1. सीमा अपनी अपनी !

कविता : दिव्या अड़लक, भोपाल 



चकाचौंध सत्ता की ताकत में, 

वो मयार्दा भूल गई,

ऎहसानो का मान छोड़कर, 

साझा सपने भूल गई।

एक नारी जो दोषी  हुई तो क्या 

सारी नारी जाती दोष भरी ?

क्या यह घटना पहली है

क्या किसी नर ने, नही ऐसा कर्म किया?

तब क्यों न इतना हल्ला हुआ?

हां वह दोषी है स्वकर्म की, 

पर सारी नारी जाति को इससे आंको नही। 

हर कण का अस्तित्व अलग है,

हर क्षण का है महत्व बड़ा! 

तो एक नारी के कर्मों से, 

हर नारी पर कैसी चर्चा भला!

                                    

                  ‌2. बाकी सब ठीक है!

कविता : धर्मेंद्र कुमार खौसे, बेतूल बाजार 



खेत में लग गई आग 

फसल हुई जलकर राख 

       बाकी सब ठीक-ठाक है 

भाई भाई में चल रही खटपट 

बात बात पर निकल रहे लठ पे लठ

     बाकी सब ठीक-ठाक है 

छह महीने से नहीं मिला वेतन 

खाली हो गए घर के सारे बर्तन

     बाकी सब ठीक-ठाक है

रिश्तेदार सारे मुंह फुला रहे हैं 

एक दूसरे के घर आ रहे हैं ना जा रहे हैं 

    बाकी सब ठीक-ठाक है

सरकारी योजनाओं में बंदरबांट चल रही है 

अफसरों के घर नोटों की खाट डल रही है

बाकी सब ठीक-ठाक है 

नेता झूठे वादे पे वादे कर रहे हैं 

जनता के ख्याली पुलाव पक रहे हैं 

     बाकी सब ठीक-ठाक है 

गरीब सड़कों पर अधनंगे घूम रहे हैं 

अमीरों के कुत्ते कपड़े पहन के घूम रहे हैं 

    बाकी सब ठीक-ठाक है 

फिल्मों ने अश्लीलता की हदें पार कर दी है 

संस्कारों की अस्मिता भी तार-तार कर दी है 

 बाकी सब ठीक-ठाक है 

नीचे से ऊपर तक सब घूस ले रहे हैं 

जनता का सारा खून चूस ले रहे हैं 

     बाकी सब ठीक-ठाक है

छोड़ो दूसरों की बुराइयों की थैली 

अपनी देखो चादर है कितनी मैली 

अपने को क्या किसी से मतलब है 

बात अब तो यही गौरतलब है 

     बाकी सब ठीक-ठाक है 

औरों को जो करना है वो करें

हम जो भी करें बस सही करे

करे ना औरों का भरोसा

गांठ बांध ले बात हमेशा

दूसरों के घर की खीर से खिचड़ी अपनी अच्छी है

औरों से क्या लेना देना अपनी नियत सच्ची है

अपना फकीराना ठाट बाट है

बाकी सब ठीक-ठाक है।

                                 

3. कठिनाईयों का दौर!

कविता : आशा "अंकनी", बेतूल



क्या कहें - क्या सुने, 

क्या पढ़ें - क्या लिखे ,

कुछ समझ नही आता,

कठिनाइयों का, ये कौन सा दौर है, 

जो आसानी से, 

गुजर नही पाता।

मस्तिष्क की घनघोर झंझावात,

और झकझोरते हृदय की हृदयाघात ,

कितनी नई कहानियां उपजाती है, 

कुछ अंदाजा नही हो पाता ।

हम सिमटकर रह जाते, अपने ही दायरे मे, 

इस निर्मम दुनिया का ,कोई थाह नही पा पाता।

सांसो के आवागमन पर ही हृदय का स्पंदन है,

और इसी स्पंदन पर मस्तिष्क खामोश ठहरता,

सांस, हृदय, मस्तिष्क की उलझी हुई डोर को,

क्यों नही कोई सुलझा पाता ।

बहुत कुछ सहकर भी ,जाने और कोन से 

दर्द बाकि है, सहने के लिए, बस यही विचार मन मे आता।

विपत्तियों की गिनती करते करते, 

कोई कांटा अंदर तक ध॔स जाता,

प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से चाहे कितनी भीड़ हो,

पर यथार्थ मे इंसान एकाकी ही रह जाता।


4. नाले का अतिक्रमण!

कविता : महेन्द्र कुमार गुदवारे, बेतूल 



शहर में,

झमाझम, 

बारिश हो रही थी।

शहर की जनता,

गहरी नींद में सो रही थी।


शहर की तंग गलियाँ,

तर-बतर होकर बह रही थी।

कचरे-मिट्टी से पटी नालियाँ,

आगे बढ़ने को कह रही थी।


नालियाँ आगे की ओर बहकर, 

अतिक्रमित नाले को,

कर रही थी लबालब।

बेचारा अतिक्रमित नाला,

आगे बढ़ने को मज़बूर था अब।


सकरा हुआ नाला,

अब कर रहा था,

कुुछ ऐसा विचार ।

भारी भरकम पानी को,

वह कैसे कर पाएगा,

आगे की ओर पार।


तभी उसके मन में,

एक विचार,

ऐसा था आया।

पानी को आगे जगह देने की,

समस्या को उसने,

जो ऐसा था सुलझाया।


कि,

शहर के लोग,

शासन-प्रशासन से,

कभी नहीं डरते हैं।

खाली जमीन के साथ-साथ, 

नाले के भीतर तक,

अतिक्रमण करते हैं।


*नाले ने कहा-*

*चलो मैं आज इन्हे,*

*अतिक्रमण का मतलब समझाता हूँ*

*ये तो मेरे बहने की जगह पर,*

*वर्ष भर अतिक्रमण करते हैं,*

*मै आज,*

*इनके रहने की जगह पर*

*कुछ ही घंटों का अतिक्रमण कर आता हूँ*


5. कहीं खुशी, कहीं गम!

कविता : पलक सबले, जबलपुर 



कहीं ख़ुशी है, कहीं गम है,

कहीं आशा है, कहीं निराशा है । 

किसी के पास सब कुछ होने पर भी दुखी है,

तो कुछ जिनके पास  कुछ नहीं है फिर भी खुश है ।

किसी के पास एक वक्त का खाना भी नहीं है,

तो कुछ खाना बरबाद कर रहे है ।

कुछ सपनों में ही जी रहे थे तो कुछ,

उन्हें साकार करने की कोशिश कर रहे हैं ।

कुछ अपनों के लिए झगड़ रहे हैं,

तो कुछ अपनों से ही झगड़ रहे हैं ।

कुछ ने सपनों के लिए अपनों को छोड़ दिया,

तो कुछ अपनो के लिए अपने सपने छोड़ रहे हैं ।


6. वही बन गया गीत !

ग़ज़ल : विजय कुमार पटैया, भैंसदेही



जो कुछ देखा भोगा पाया, वही बन गया गीत। 

 देखा समझा मन को भाया, वही बन गया मीत।

 चालें चलकर रण में लड़कर, कितने हुए सिकंदर,

 सच्चा वही सिकंदर जिसने, मन को लिया जीत।

 वक्त रहते सोता रहा, पा न सका मंजिल को,

 अब पछता कर ना पावेगा, समय गया है बीत।

 मंदिरों की मूर्तियों पर, धन मत बरसाओ,

 प्यासे को पानी भूखे को रोटी का, करो काम पुनीत।

 शैतान भी तन को रंग कर, बन रहे हैं साधु,

 मन को रंगों, क्यों रंगते हो वस्त्र श्वेत पीत।


7. महंगा टमाटर!

कविता : अनुराधा देशमुख, बेतूल 

मंहगा टमाटर🍅🍅

कुछ दिनों पहले सस्ता था

खूब खरीद खरीद कर लाए मुझे

जब मारा मारा फिर रहा था

कोई नहीं हाल मेरा लेख रहा था



टमाटर केचप की बोतल

भर भर कर फ्रीज में धर दी सबने

आज थोड़े मेरे भाव क्या बढ़े,

नजरे चुरा कर जाने लगे हो


लाल टमाटर खाएंगे मोटे ताजे होंगे

गीत को बिसराने लगे हो😍

सलाद में भी खूब काटा मुझे

ग्रेवी में भी खूब इस्तेमाल किया


अब जरा मैंने क्या भाव बढ़ाएं

वाह रे मानव तूने कर दिया

मुझको टाटा बाय बाय 


इसलिए भाव बढ़ना किसी के भी अच्छे नहीं होते

नजर के सामने भी रहे पर कोई पूछता नहीं

फिर तुम कितने भी उपयोगी रहो

तुम्हारे तरफ नजर कोई फेरता नहीं 


8. लफ्ज़ !

ग़ज़ल : लक्ष्मण खंडाग्रे, नागपुर 



लफ्ज़ आँखों से निकलें तो आंसूं बन जाते हैं,

लफ्ज़ कलम से निकलें तो कविता बन जाती है।

लफ्ज़ दिल से निकले तो दुआ बन जाती है,

लफ्ज़ निकल न पाएं तो टीस बन जाते हैं। 

लफ्ज़ ज्यादा निकलें तो बकवास बन जाते हैं,

लफ्ज़ मौन हो जाएँ तो प्रार्थना बन जाती है। 

लफ्ज़ में आंसू मिल जाएँ तो आह बन जाती है,

लफ्ज़ फैले तो आसमाँ बन जाते हैं। 

लफ्ज़ सिमटे तो तीर बन जाते  हैं ,

लफ्ज़ उड़े तो अफ़साने बन जाते हैं।

लफ्ज़ डूबें तो कारनामे बन जाते हैं। 

लफ्ज़ रोयें तो महफ़िल में जान आ जाती है,

लफ्ज़ हंसें तो महफ़िल जवां हो जाती है।

९. रक्षा बंधन !

कविता : अरुणा पाटणकर, बैतूल 

रुत सावन की प्यारी आई बहना,

उस पर राखी का पर्व, वाह ! क्या कहना। 

सावन के झूले झूलो, मानो दिल का कहना ,

हाथों में कंगना बाजे, पायल बाजे छन न न न...

दीप जले, रंगोली सजे, भाई बहन का प्यार खिले। 

भाई के माथे, तिलक लगे, कलाई पे न्यारी राखी सजे।



 



१०. हमारा प्यारा परिवार!

कविता : दीपा मालवीय 



🌸 एक- एक मोती पिरोकर बनाया हमने बहुमूल्य हार,

 रिश्तों का प्यारा बंधन है हमारा परिवार।।

🌸 न बहू मे लडाई, न भाई- भाई मे तकरार,

 सुख में जहाँ मिले सबका प्यार,

 दुख में भी साथ खडा है हमारा परिवार,

  स्वर्ग से सुन्दर सपनों से, प्यारा है हमारा परिवार।।

🌸 माता- पिता की छांव तले,भाई- बहन का प्यार,

 बिन बोले ही स्नेह ,मिले ऐसा हमारा परिवार,

 न मोह है माया का,न मन मे कोई विकार ,

 धन - दौलत से परे,हमारा परिवार।।

🌸 आजादी तो मिल जाती है परिवार से होकर दूर,

 लेकिन चले जाते है हमारे संस्कार,

 मुसीबतों की मझधार मे ,बन जाता पतवार,

 भवर से पार लगाये, ऐसा है हमारा परिवार।।

🌸 बच्चों की शैतानीया,दादा- दादी की फटकार ,

 सबका भाग्य संवर जाये ऐसा हमारा परिवार,

राष्ट निर्माण व जीवन सभ्यता का आधार,

 सिखलाये सदाचार, ऐसा है हमारा परिवार।।

🌸 बरगद की छाँव तले बसेरा,

  निर्भय होकर हमने डाला डेरा,

 खुशियों की इस बगियाँ मे सबके मिलने से आये बहार

 जैसे पंछी कलरव करें ,ऐसा है हमारा परिवार।।

🌸 हाथ में ले चाय का प्याला बातें करें चार,

 रसोई में बनाये पकवान सब मिलकर,

 मन में हो सबके आनंद अपार,

 हे! ईश हमें देना ये आशीष , 

हर जन्म में हमें मिले ऐसा ही परिवार।।


               🙏दीपा मालवीय🙏


Let's Learn English 

6. In A Book Shop ! किताब की दुकान में !

a. Good Afternoon, Sir!
     नमस्कार महोदय !
b. Good  Afternoon! What can I do for you sir?
     नमस्कार ! मैं आपके लिए क्या कर सकता हूँ?
a. I want some books. मुझे कुछ किताबें चाहिए। 
b. Which books do you want? आपको कौन सी किताबें चाहिए ?
a. I want the books of English and Mathematics.
    मुझे इंग्लिश और गणित की किताबें चाहिए। 
b. For which class? कौन सी कक्षा के लिए ?
a. For 12th class. कक्षा बारहवीं के लिए। 
b. Do you prefer any particular writer?
    क्या आपको किसी विशेष लेखक की किताब चाहिए ?
a. Yes, I prefer Dr. Pawan Agrawal. 
     हाँ , मुझे डॉक्टर पवन अग्रवाल पसंद है। 
b. Ok, here are your books. ओके, ये हैं आपकी किताबें।  
a. What is the price of the books ? 
    किताबों की कीमत क्या है ?
b. It is 85 rupees of English and 165 rupees of Mathematics.
    अंग्रेजी के 85 रूपये और 165 रूपये गणित। 
a. Will you not give any discount? 
     क्या आप कुछ छूट नहीं देंगे ?
b. Yes, I will give you 15 % discount. Do you want anything else?
     हाँ, मैं आपको 15 प्रतिशत छूट दूंगा। क्या आपको और कुछ चाहिए?
a. Yes, I want a pen. हाँ, मुझे एक पेन चाहिए। 
b. Here are some pens. ये हैं कुछ पेन। 
a. What is the cost of this pen? 
     इस पेन की कीमत क्या है ?
b. It is ten rupees only. मात्र दस रूपये। 
a. And what is the cost of that pen? 
    और उस पेन की कीमत क्या है ?
b. It is of twenty rupees only. Which one do you want?
    मात्र बीस रूपये। आपको कौन सा वाला चाहिए ?
a. I want this one. मुझे ये वाला चाहिए।  
b. Ok this is your pen. ठीक है, ये है आपका पेन। 
a. What is the total? कुल कितना हुआ है। 
b. It is 250 rupees only. मात्र 250 रूपये। 
a. This is your money. ये हैं आपके पैसे। 
b. This is your material.  ये है आपका सामान।  
a. Thank you! धन्यवाद !
b. You are welcome, sir! Please come again.
    आपका स्वागत है, महोदय।  कृपया फिर आइयेगा। 

    





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