2. काव्यगाथा पाक्षिक पत्रिका (लेखक परिचय परिशिष्ट) Kavygatha Magazine 15/05/23
काव्यगाथा पाक्षिक पत्रिका Kavygatha Fortnight Magazine 15/05/23
काव्यगाथा ऑनलाइन पाक्षिक पत्रिका क्या है?
यह हर पंद्रह दिन में यानी हर माह की 15 एवं 30 तारीख को प्रकाशित होने वाली ऑनलाइन पाक्षिक पत्रिका है। जिसकी सामग्री लिखित, फोटो, एवं वीडियो, के रूप में पब्लिश की जाती है। इसे दुनियां में कहीं भी google या blogger या chrome पर खोला जा सकता है, भेजा जा सकता है और पढ़ा जा सकता है। यह स्थाई रूप से ब्लॉग पर मौजूद रहती है आप जब चाहें इसे देख पढ़ सकते हैं और दूसरों को भी पढ़वा सकते हैं। यदि आप इस ऑनलाइन पत्रिका के सदस्य बनते हैं तो आपका वीडियो फ्री में हमारे इसी नाम के यू ट्यूब चैनल पर भी पब्लिश किया जा सकेगा। पत्रिका से जुड़ने के लिए संपर्क करें - 09977577255
पत्रिका की सदस्यता के लाभ :
(सम्पादकीय : प्रहलाद परिहार )
दोस्तों, इस बार का अंक विशेष तौर पर ''काव्यगाथा'' पत्रिका के रचनाकारों के विस्तृत परिचय का अंक है। इसमें आप जी भर कर अपने बारे में लिखिए, बताइये आप क्या और क्यों हैं ? हम एक ऐसा रचना संसार बनाना चाहते हैं जिसमे सबके लिए जगह हो कोई भेदभाव नहीं हो। एक ऐसे रचनाकारों का समूह जो अपने देश और समाज को प्रेम करता हो और उसके उत्थान के लिए सच्चे दिल से कुछ करना चाहता हो। दुनियां में सभी को कुछ न कुछ तकलीफ है। हमारी कोशिश है कि हम जब तक जियें अपने आस पास अपनी रचनाओं और अन्य गतिविधियों के माध्यम से खुशियों का संचार करें। हम सब एक देश के नागरिक हैं, भूतकाल की भूलों को भूलकर आओ एक साथ आगे बढ़ें, प्रेम का संचार करें। मरते समय कुछ साथ न जायेगा, फिर क्यों नफरत, भेदभाव और दिलों में कंजूसी को ढोते फिरें। इस ऑनलाइन प्लेटफॉर्म से आपको क्या मिल सकता है ये हमने नीचे बताने की कोशिश की है। उम्मीद है आपको हमारी यह कोशिश पसंद आएगी। शुभकामनाओ के साथ ! आपका शुभचिंतक और मित्र : प्रहलाद परिहार !
1. रचनाकार इसमें साल भर में 24 बार (हर अंक में) अपनी रचनाएं छपवा सकते हैं, और एक क्लिक से दुनिया में कही भी शेयर कर सकते हैं।
2. कलाकार, सौंदर्य विशेषज्ञ, या अन्य कोई प्रोफेशनल इसमें अपने कार्य संबंधी लेख लिख सकते हैं, अपना साक्षात्कार छपवा सकते हैं (वीडियो भी बनवा सकते हैं), जिससे उनके संपर्क का दायरा विश्वस्तरीय होगा और उन्हें ज्यादा से ज्यादा काम मिलेगा।
3. साथ ही जो लोग अपनी इंग्लिश इंप्रूव करना चाहते हैं या लिखना, पढ़ना एवं बोलना सीखना चाहते हैं उनके लिए इसमें नियमित रूप से सामग्री एवं वीडियो पब्लिश किए जाते हैं।
4. उपरोक्त सभी तरह के लोग इसके सदस्य बन सकते हैं एवं फोन के द्वारा या व्हाट्स ऐप के माध्यम से संपादक से सीधे संपर्क कर सकते हैं। धन्यवाद!
5. इस तरह से हमारा एक संगठन बन जायेगा और हम सभी सदस्य मिलकर साल में तीन-चार बार काव्य गोष्ठियों का आयोजन भी कर सकते हैं।
"Kavygatha" Magazine Pattern
1. Editorial संपादकीय
2. Index अनुक्रमणिका
3. Poems, stories, articles कविता, कहानी, लेख
4. Let's Learn English आओ इंग्लिश सीखें
a. Grammar
b. Speaking
c. Vocabularies
d. Test Yourself
e. Answer of Last TY
5. Your Letters (comments) आपके पत्र
अनुक्रमणिका
1. आशा ''अंकनी'' : जब कोई समझ न पाए !
2. दीपा मालवीय : औरत का अस्तित्व !
3. अरुणा पाटनकर : अहंकार!
4. अनुराधा देशमुख : जीवन में कुछ कमी भी है !
5. विजी अशोक : माँ की जब जब याद आई !
6. दीपक मेटकर : सफर!
7. डॉ. निरुपमा सोनी : गुरु!
8. वंदना दरवाई : माँ का रूप मेरी दृष्टि में !
9. त्रिलोक शर्मा :
10. विद्या निर्गुड़कर : मां जैसा कोई नहीं!
11. वीणा भलावी : मेरा शहर खो गया है कहीं !
12. आओ इंग्लिश सीखें! : प्रहलाद परिहार
1. आशा "अंकनी"
संक्षिप्त परिचय : वे अपना नाम आशा ही कहलाना पसंद करती हैं। तमाम मुश्किलों और जीवन के अंधेरों और उजालों के बीच अपने नाम के मुताबिक ही वे उम्मीद रखती हैं सबकुछ ठीक हो जाने की। इनका जन्म १५ सितम्बर सन १९७८ में बैतूल में ही हुआ था। इनकी माता का नाम श्रीमती अंजीरा लोखंडे और पिता का नाम श्री अमृतराव लोखंडे है। वर्तमान में वे यहीं एक शासकीय शिक्षिका हैं। उनकी स्कूली शिक्षा पास के ही शहर इटारसी में हुई और फिर ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन गणित विषय के साथ बैतूल के ही शासकीय जयवंती हाक्सर महाविद्यालय से किया। वे बताती हैं कि उन्होंने लिखने की शुरुआत लगभग बारह वर्ष की उम्र से की थी। लिखने के लिए वे किसी खास विषय तक सीमित नहीं हैं। जब जिस विषय पर मन करता है, लिखती हैं। अपने इस शौक और रूचि के लिए वे ईश्वर को धन्यवाद देती हैं कि उनकी कृपा और प्रेरणा से वे अपने जीवन के अच्छे बुरे अनुभवों को साहित्य के रूप में उतारने की कोशिश करती हैं। अभी वे वर्तमान में बैतूल के ही सदर क्षेत्र में निवास करती हैं। पेश है उन्ही की लिखी हुई एक ताजा कविता -
जब कह कर भी कोई, समझ न पाए,
तो क्यूं व्यर्थ अपने, शब्द गंवाए।
जब हमारे शब्द, निशब्द हो हवा में छाए,
तो मौन को ही अपना हथियार बनाए।
न समझने वालों से, थोड़ा दूर हो जाए ,
फिर वह खास हो, अपने हो या हो पराए।
भाव मत दो उनको, जो भाव समझ न पाए,
मौन को अपना लो, फिर चाहे कोई झुंझलाए ।
हमारे शब्द व्यर्थ नही है, उनका सामर्थ्य न खोने पाए,
बस इतनी सी बात हमारी, हमारे शब्द झलकाए।
अबोध लोगों के बीच, क्यूं व्यर्थ अपने शब्द भटकाएं ,
शब्दों को छोड़कर, मौन और बस मौन ही अपनाए।
रचना : " आशा अंकनी "
2. दीपा मालवीय
संक्षिप्त परिचय : ये अपने नाम की तरह ही साहित्य रचना और शिक्षण के माध्यम से रोशनी का दीप जलाए हुए हैं। इनका जन्म 12 जुलाई 1982 को बेतुल में ही हुआ था। इनके पिता का नाम श्री मुन्नालाल मालवीय और माता का नाम श्रीमती सुशीला मालवीय है। इनके जीवन साथी हैं श्री राजू मालवीय। इनकी स्कूली शिक्षा शासकीय कन्या उच्चतर विद्यालय, बैतूल में तथा महाविद्यालयीन शिक्षा शासकीय जयवंती हॉक्सर महाविद्यालय, बैतूल से पूरी हुई है।
अपने बचपन को याद करते हुए वे बताती हैं :" हमारे समाज मे जब बेटे और बेटी मे भेदभाव की भावना थी और लड़कियों का पढ़ना लिखना बंद था। ऐसी ही स्थिति मेरे साथ थी। कक्षा 10वी के बाद जब मुझे आगे पढ़ने की अनुमति नही मिली तब मेरी दादी जोकि अनपढ़ थी उन्होंने मेरे पापा को समझाया कि इसे आगे पढ़ने दो। ये बेटी है तो क्या हुआ बेटे से कम तो नहीं। तब मेरे पापा ने मुझे आगे पढ़ने की अनुमति दी और मेरा साथ भी दिया और आज मैं जहा हूं, जो कुछ भी हूं, अपनी दादी जी और पापा के कारण हूं। मैने लिखना तो कॉलेज के समय से शुरू किया, कुछ कारण से विराम लग गया पर फिर कोरोना काल में मेरी लेखनी फिर चल पड़ी और मैने पुन: लिखना शुरू किया। "
वे लगभग सभी विषयों पर लिख लेती हैं। वे कहती है," मन के भावों को कागज़ पर उकेरना ही तो काव्य गाथा है।" अब तक के सफर में सहयोग के लिए आप अपने जीवन साथी को धन्यवाद देती हैं जिन्होंने सदैव इन्हे प्रोत्साहित किया।साथ ही वे आभार प्रकट करती हैं - अभिव्यक्ति मंच के संचालक जे पी यादव सर जिनके माध्यम से इनकी प्रतिभा को मंच मिला और प्रहलाद परिहार सर जिन्होंने काव्य गाथा की राह दिखाई।अब तक वे अभिव्यक्ति मंच इटारसी, बी एम एस एफ ग्रुप, बेतुल में अपनी प्रस्तुति दे चुकी हैं, और आजकल काव्यगाथा ऑनलाइन पाक्षिक पत्रिका में निरंतर लिख रही हैं। हाल ही में इनकी कविताएं "भोर के तारे २०२३ " में भी प्रकाशित हो चुकी हैं। वैसे वे सामाजिक कर्तव्यों के साथ एक शिक्षिका का कर्तव्य बखूबी निभा रही हैं। वर्तमान में वे जे. एच. कॉलेज के पीछे, संजय कॉलोनी, विकास वार्ड, बैतूल, मध्य प्रदेश में निवासरत हैं।
औरत का अस्तित्व !
औरत तेरे अस्तित्व की यही है कहानी,
चेहरे पर हंसी है और आँखों मे है पानी।
सपनों को संजोए बैठीं है ये रानी,
तेरे अरमानों की है यह कुबार्नी ।
तुझे समझ सके ऐसा नहीं कोई प्राणी,
आज तेरी आत्मा पर लगी चोट कोई पुरानी।
जिस पर था विश्वास, तू थी अभिमानी,
उस बेर्ददी ने दी तुझे, ये जख्म भरी निशानी।
उसे समझ न पाई मैं, यही थी मेरी नादानी,
अनेक रूपों में निभाती रही, अपने फर्ज की कहानी।
अब भी समय जाग जा हे ! सोई हुई नारी
वरना ऐसे ही लूटेंगे तुझे ये लुटेरे अभिमानी।
रचना : दीपा मालवीय
3. अरुणा पाटनकर
संक्षिप्त परिचय : ''अरुणा'' का अर्थ होता है लाल, आवेशपूर्ण, या उपजाऊ। शायद अपने नाम के ही अनुसार इन्होने विद्रोही जीवन जिया है अबतक। विद्रोह समाज की दकियानूसी सोच के विरुद्ध जो एक लड़की को कमतर आंकता रहा। इनका जन्म दल्ली राजहरा, छत्तीसगढ़ में 14 अक्टूबर सन 1969 को हुआ था। इनकी माता का नाम श्रीमती सरस्वती बारस्कर और पिता का नाम नारायणराव बारस्कर है। श्री गोविन्द पाटनकर इनके जीवनसाथी हैं। इनकी स्कूली शिक्षा स्थानीय स्कूल में एवं ग्रेजुएशन रविशंकर यूनिवर्सिटी, छत्तीसगढ़ से पूरा हुआ है। आगे इन्होने बरकतुल्ला यूनिवर्सिटी मध्यप्रदेश से हिंदी में एम ए किया है। इन्होने लगभग ग्यारह - बारह बरस की उम्र से कविता लिखना शुरू किया। पहली कविता '' दोस्ती '' पर लिखी थी जो माँ ने पढ़ी थी और फाड़ दी थी। वे सभी समसामयिक विषयों पर यानि वास्तविक समस्याओं पर अपनी कलम चलाती रहती हैं। विशेषतः कविता, कहानी और लेख लिखती रहती हैं। समय-समय पर पत्र पत्रिकाओं में इनकी रचनाओं का प्रकाशन होता रहता है।
वर्तमान में वे बैतूल की एकमात्र साहित्यिक संस्था ''सृजन साहित्य कुंज'' के अध्यक्ष पद का निर्वहन कर रही हैं। उन्हें अनेकों बार विभिन्न कार्यक्रमों के मंच संचालन का अवसर मिला है। इससे उन्हें आनंद की अनुभूति होती है। वे अब तक के शानदार रचनात्मक सफर के लिए सर्वप्रथम ईश्वर को और फिर अपने जीवन साथी एवं बच्चों को धन्यवाद देती हैं। उन्हें अब तक अनेक संस्थाओ से सम्मान प्राप्त हो चुके हैं जैसे - कुनबी रत्न सम्मान, बैतूल, कलम क्रांति सम्मान, बैतूल, लायंस क्लब बेस्ट टीचर अवार्ड, बैतूल, आगरा कवि सम्मलेन में सम्मान, हैदराबाद में साहित्यिक सम्मान, लिटिल फ्लावर स्कूल, बैतूल द्वारा कवयित्री का सम्मान आदि। वे पिछले पच्चीस वर्षों से बैतूल के लिटिल फ्लावर स्कूल में अध्यापन का कार्य कर रही हैं। यहीं कालापाठा की ''गोकुलधाम सोसाइटी'' में उनका वर्तमान निवास है।
अहंकार....
अहम का कोई आकार नहीं होता है,
जिसे होता है,बस बढ़ता और बढ़ते जाता है।
उसका 'मैं' उसे अपनों से दूर ले जाता है,
चाहकर भी वह किसी का अपना नहीं बन पाता है।
जब हो अहम, इंसान को ईश्वर नहीं मिल पाते हैं,
क्योंकि जहां अहम हो , वहां वे रह नहीं पाते हैं।
ऊपरी चकाचौंध में, ज्ञान का दीप जल नहीं पाता है,
सब बौने लगते हैं, जब अज्ञान का अंधेरा छाता है।
कविता : अरुणा पाटनकर
4. अनुराधा देशमुख
संक्षिप्त परिचय : भूतपूर्व छात्र संघ अध्यक्ष कन्या महाविद्यालय, बैतूल और शासकीय जयवंती हाक्सर महाविद्यालय, बैतूल, अनुराधा देशमुख जी का जन्म 6 अप्रैल 1981 को सावलमेंढा ग्राम में हुआ था। इनकी माता का नाम श्रीमती वामदेवी धाड़से और पिता का नाम स्वर्गीय श्री कुशराज जी धाड़से है। इनके जीवन साथी हैं श्री विशाल नाना साहेब देशमुख। इनकी प्रारंभिक शिक्षा शासकीय हाई स्कूल सावलमेढा में हुई और ग्रेजुएशन गवर्नमेंट गर्ल्स कॉलेज एवं पोस्ट ग्रेजुएशन गवर्नमेंट जे एच कॉलेज, बेतूल, बरकतउल्ला यूनिवर्सिटी से पूरा हुआ है। इन्होंने अपनी पहली कविता- "देखा है एक सपना" कक्षा दसवीं में लिखी थी।
अबतक उन्हे अनेक पुरुष्कार एवं सम्मान मिल चुके हैं जिनमे प्रमुख हैं - कुनबी रत्न सम्मान, अमृता प्रीतम सम्मान, इंदौर में, प्रखर कलम पुरस्कार सम्मान, राष्ट्रभाषा गौरव सम्मान, नारी सागर विशिष्ट सम्मान, अखबारों एवं पुस्तिकाओं में रचनाएं प्रकाशित, विभिन्न ऑनलाइन मंच द्वारा श्रेष्ठ रचनाकार का पुरस्कार, आदि। वर्ततमान में उनका पता है - ग्राम नवापुर, तहसील भैसदेही, जिलाा बैतूल। वे अपना आदर्श अपने पापा स्वर्गीय श्री कुशराज जी धाडसे को मानती हैैं। उन्हें अपने परिवार से हमेशा सपोर्ट मिलता रहा है।
आगे उनके बारे में जानते हैं उन्ही के शब्दों में - ''मेरे पापा जो एक शिक्षक होने के साथ एक लेखक भी थे, उन्होंने हमेशा मुझे लिखने के लिए प्रोत्साहित किया। पहले मैं दो चार लाइन की छोटी-छोटी कविताएं लिखती थी। मुझे उनको शीर्षक देना नहीं आता था। पापा उसे शीर्षक देते थे। बताते थे कि कहां गलती हुई, कहां सही करना है। पापा अपनी कविताओं के साथ-साथ, विद्यार्थी जीवन में मेरी रचनाएं भी पेपर में प्रकाशित करवाते थे। इससे मेरा उत्साह और बढ़ता गया। उनका नहीं होना आज मुझे बहुत खलता है। अब शीर्षक देना, गलती सुधारना, सब खुद से ही करना होता है। उन्होंने मुझसे कहा था,'' बेटा लिखना मत छोड़ना। '' विद्यार्थी जीवन में मैं पढ़ाई अव्वल तो थी ही, उसके साथ-साथ अन्य विधाओं में भाग लेना मुझे बहुत अच्छा लगता था। भाषण देना डांस करना यह सब मुझे बहुत पसंद था। शादी के बाद बहुत कुछ बदल जाता गया। हम घर गृहस्थी में उलझ कर रह गए।
लेकिन कहीं ना कहीं मुझे लगता था कि मुझे सिर्फ एक हाउसवाइफ बनकर नहीं रहना है। अपनी एक पहचान बनाना है। मेरे ससुर जी ने भी हमेशा मेरा उत्साह बढ़ाया। पापा के जाने के बाद मैंने लिखना बंद कर दिया था, फिर उनके कहे शब्द याद आए और मैंने फिर से अपनी कलम उठाई - थोड़ा-थोड़ा लिखना शुरू किया। कोरोना काल में इसे और गति मिली। कोरोना के अनुभव, जो हम अपने आसपास देखते थे उन सब पर लिखना शुरू किया। और हम जैसी गृहणियों के लिए सोशल मीडिया एक बहुत अच्छा माध्यम है - अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त करने का, अपना हुनर दिखाने का। मैंने भी व्हाट्सएप और फेसबुक पर अपनी कविताएं डालना शुरू की। लोग उसे पसंद करने लगे, कमेंट करने लगे तो उत्साह और बढ़ता गया। इसमें मेरे परिवार, रिश्तेदार और दोस्तों का बहुत सहयोग मिला। मेरी सहेली आकाशवाणी में काम करती है। उन्होंने मुझसे कहा अनु इतना अच्छा लिखती हो तो आकाशवाणी में अपनी कविताएं दिया करो और उसके बाद मैं कई बार आकाशवाणी में महिला जगत में काव्य पाठ कर चुकी हूं। धीरे-धीरे सिलसिला आगे बढ़ते जा रहा है। अब तक मैं कई अवार्ड अपने नाम कर चुकी हूं। इन सब में जिनका भी मुझे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रुप से सहयोग मिला उन सभी को मैं हार्दिक धन्यवाद देना चाहूंगी।
जीवन में कुछ कमी भी है !
जीवन में कुछ कमी भी है,
फिर भी जीने की गुंजाइश तो है।
खाने में एक सब्जी कम है,
फिर भी पेट भरने की गुंजाइश तो है।
हो गए हमसे कुछ लोग नाराज,
तो उन्हें मनाने की गुंजाइश तो है।
मिलता नहीं सबको सब कुछ यहां,
फिर भी खुश रहने की गुंजाइश तो है।
हर किसी का हर सपना होता नहीं पूरा,
फिर भी कुछ सपने पूरे होने की गुंजाइश तो है।
सूखी रहती है धरती कभी,
फिर भी हरियाली की गुंजाइश तो है।
कली है जो आज उसके फूल बनने की गुंजाइश तो है
जीवन में आ जाए कितनी ही उलझने,
फिर भी उनके सुलझने ने की गुंजाइश तो है।
जी ली जिन्होंने एक कमरे में जिंदगी,
उनके फ्लैट लेने की गुंजाइश तो है।
इन्हीं गुंजाइशों के सहारे जी लेते हैं कई,
फिर भी कई गुंजाइश, गुंजाइश ही रहती है।
और इन्हीं गुंजाइशों में
खुश रहने की गुंजाइश तो है।
अनुराधा देशमुख
5 . विजी अशोक
संक्षिप्त परिचय : इनका जन्म २२ अगस्त १९६९ को भिलाई मध्यप्रदेश में हुआ था। इनकी माता का नाम श्रीमती राधामणी केशवन और पिता का नाम स्वर्गीय श्री एम.एन.केशवन है। श्री डी.अशोक कुमार इनके जीवन साथी हैं। इनकी स्कूल शिक्षा एम.जी.एम.हाईयर सेकंडरी स्कूल, भिलाई में तथा महाविद्यालयीन शिक्षा सेंट थामस कालेज, भिलाई में और कल्याण कालेज, भिलाई में संपन्न हुई। वर्तमान में वे आकाशवाणी, भोपाल में कार्यरत हैं और वहीँ हाउस नंबर 92, जागेशवर महादेव मंदिर के सामने, मीराकार स्टैंड कौन्टी, के.एन.पी.कालेज के पास, होशंगाबाद रोड, मिसरोद, भोपाल में निवासरत हैं। अब तक उन्हें जो पुरुस्कार और सम्मान मिला वो इस प्रकार है - कलम क्रांति सम्मान, बैतूल, श्यामा देवी बाजपेई सम्मान, भोपाल, आगमन काव्य संगोष्ठी, भोपाल जैसे विभिन्न संस्थाओं से प्रशस्ति पत्र प्राप्त। कई पत्र-पत्रिकाओं और पुस्तकों में स्थान प्राप्त। जैसे ''भोर के तारे 2012''
आगे की कहानी हम उनकी ही जुबानी सुनेंगे, वे बताती हैं - मेरे पापा हिन्दी विद्वान थे। उन्हें हिन्दी नोवेल पढ़ने और टीवी पर काव्य-गोष्ठियां सुनने - देखने का बड़ा शौक था। हम छोटे थे तो हमें नोवेल पढ़ने की मनाही थी। मैं अपने स्कूल की किताब के अंदर पापा के नोवेल छुपाकर पढ़ा करती थी और जब वो टीवी पर कवि गोष्ठियां सुनते थे तो उनके साथ मैं भी बैठकर वाह-वाह करतीं थी। जबकि उस समय मुझे कुछ नहीं आ रहा होता था। मगर धीरे-धीरे मुझे भी लिखने-पढ़ने का शौक होने लगा और मैं कविताएं लिखने लगी। मेरी पहली कविता अंग्रेजी में और बहुत छोटी सी थी "द बटरफ्लाई"। पापा बहुत खुश हुए थे कविता सुनकर। उनकी हौसला अफजाई ने मुझे प्रेरित किया इस क्षेत्र में आगे बढ़ने को। आज मैं जब किसी मंच पर कविता पाठ करती हूं तो बहुत इच्छा होती है कि काश पापा भी कभी मुझे देख पाते कविता पाठ करते हुए.... हां वो जरूर ऊपर से मुझे देखते होंगे और बहुत आशिर्वाद भी देते होंगे।
जब मैं 5वीं में पढ़ रही थी तब मैंने पहली कविता लिखी थी अंग्रेजी में, फिर थोड़ा बहुत कभी-कभार लिखती रही। पर लेखनी में थोड़ी सी परिपक्वता तब आई जब मैं घर से दूर, मम्मी-पापा और भाई-बहनों से दूर उम्र के बीसवें साल में जाब करने बैतूल में अकेले रहने लगी। आमतौर पर जब मेरे मन को कोई बात छू जाए या कोई बात बहुत परेशान करें, तो कुछ लिख पाती हूं। मेरी लेखनी का क्षेत्र अमूमन ज़िन्दगी, प्रकृति, नारी, जैसे विषय रहा है। अब तक के सफर के लिए मैं धन्यवाद देती हूँ मेरे पापा जो हमेशा से मेरी प्रेरणा रहें, स्वर्गीय रायचरण यादव, जिन्होंने मुझे पहली बार मंच दिया और पहली बार मेरी रचना को प्रिंट मीडिया से परिचय करवाया, श्री प्रहलाद परिहार जी को जिन्होंने मेरी रचना को भोर के तारे २०१२ में स्थान दिया और साथ ही मेरी जिंदगी में आए, मुझसे जुड़े हर एक व्यक्ति को धन्यवाद देती हूं, जिनकी वजह से आज मैं "मैं" हूं।
माँ की जब जब याद आई !
मां की याद जब जब आई
मन में एक ठंडक सी छाई
थोड़ी-थोड़ी गर्माहट सी
हल्की गुन-गुनी धूप सी.......
नर्म हाथों की छुअन
फिर सहला गई।
यादों की चादर हल्की सी,
कोमल सी, मखमली सी.........
नसीहतें, समझाइशें उनकी
हंसी में जो उड़ाई थी।
उनकी बातें, उनकी आवाजें,
छोड़ी थी कुछ सुनी सी।
कुछ-कुछ अनसुनी सी........
रहती है चिंता में मेरी हरदम,
आज भी वो परेशान सी।
मां के लिए आज भी हूं ,
मैं बच्ची सी, कुछ-कुछ कच्ची सी.......
पर आज समझी हूं
'मां' अक्षर में छुपे ब्रम्हांड को
मां से है ज़िन्दगी,
ज़िन्दगी भी मां ही,
हवा की ठंडक सी,
गुलाबी धूप सी..
मीठी-मीठी सी,
थोड़ी-थोड़ी खट्टी सी...
ऐसी भी, वो है वैसी भी
सत्य भी वही, धर्म भी वही
ईश् वचन वो, ईश्वर भी वही
मां ईश्वर सी..........।
विजी अशोक
6 . दीपक मेटकर
संक्षिप्त परिचय : इनका जन्म जलगॉंव, महाराष्ट्र में सन 1978 में हुआ था। इनकी माता का नाम उमाबाई और पिता का नाम महेश मेटकर है। इनकी स्कूली शिक्षा जलगांव में ही संपन्न हुई। जब वे जलगांव के ही कॉलेज से फार्मेसी कर रहे थे उसी दौरान इन्होने लिखना आरम्भ किया। वे ज्यादातर हिंदी भाषा में लघुकथाएं और कवितायें लिखा करते हैं। साहित्य रचना में अब तक के सफर में सहयोग के लिए वे अपने मित्रों को धन्यवाद देते हैं। वर्तमान में वे एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी कर रहे हैं। इसके पहले वे बैतूल शहर में एक मिडिल स्कूल के संचालन की जिम्मेदारी निभा चुके हैं। उनका वर्तमान पता है - 126 चित्रा नगर, मेदांता हॉस्पिटल रोड, विजय नगर के पास, इंदौर, मध्य प्रदेश।
*सफ़र*
एक सफ़र की शुरुआत
फिर सफ़र से करना
मंजिल से गुजर कर
फिर से नई मंजिल को पाना।
कभी अकेले, तो कभी कारवां के साथ!
ये वक्त की तलाश
किस हद तक ले जाती हैं?
आज मुकाम वहां हैं,
तो कल कहां?
बिखरते और सिमटते इन पलों को
आज फिर एक नए वक्त की तलाश हैं।
वक्त जो कभी ठहरता नही,
कभी थकता नहीं।
जो ठहरे हुए हैं अपनी राहों में
उन्हें छोड़ कर वह भी
अपनी अनजानी मंजिल की
ओर बढ़ा चला जा रहा हैं।
किसी की फिक्र नहीं
कोई साथी भी नहीं!
अकेला, सदियों अपनी राह खोजता हुआ
ये वक्त, क्यों इतना तनहा सा
खामोश बेजान सा हैं?
कोई अहसास अपने अंदर समेटे है
इस वक्त का कोई वक्त नही
इसका कोई अपना नहीं
इसका कोई साथी नहीं।
दीपक मेटकर
7 . डॉ निरुपमा सोनी
गुरु !
गुरु कोई व्यक्ति नहीं !
हर वो चीज़ जो हमें आगे बढ़ने की शिक्षा दे ,
वह उस वक़्त गुरु बन जाती है !
फिर चाहे वो सजीव हो या निर्जीव !
वो चींटी भी हो सकती है,
जो बार बार गिरकर, फिर चलने की कोशिश करती है!
और चट्टान भी,
जो तेज तूफान आने पर भी अडिग खड़ी रहती है!
संक्षिप्त परिचय : डॉ निरुपमा सोनी जी का जन्म छिंदवाड़ा जिले के पास स्थित जुन्नारदेव कस्बे में 26 मई 1992 को हुआ था। इनकी माता जी का नाम श्रीमती मंजू सोनी और पिताजी का नाम श्री संतोष सोनी है। हाल ही में इनके जीवन साथी बने हैं बैतूल के डॉ श्री प्रफुल्ल सोनीजी। इनकी स्कूली शिक्षा कन्हान व्हेली स्कूल, जुन्नारदेव और महाविद्यालयीन शिक्षा एन एच एम सी, भोपाल से पूरी हुई है। वर्तमान में इनके द्वारा बैतूल में ही एक चिकित्सालय का संचालन किया जा रहा है! लिखना इन्हे बचपन से ही पसंद है ! वे बताती हैं, ''मेरे लेखन को एक नई दिशा दी मेरे स्कूल टीचर नागोरे सर ने! मैं स्कूल में जब भी कुछ लिखती थी वो हमेशा मेरी कमियाँ बताते! मेरी रचनाओं को सुधरते और संवारते थे ! मैंने 14 साल की उम्र में अपनी पहली कविता लिखी थी ! मैं जीवन के हर क्षेत्र में हर विषय पर अपने विचार लिखती हूँ। अब तक के सफर में सहयोग के लिए विशेषतौर पर मैं नागोरे सर, नंदिनी चौहान, मेरी सासु माँ श्रीमती समता सोनी, और प्रहलाद परिहार सर को धन्यवाद देती हूँ!
८ . वन्दना दरवाई
संक्षिप्त परिचय : इनका जन्म २२ फरवरी १९७२ को बैतूल में हुआ था। इनकी माता का नाम श्रीमती मुक्ता और पिता का नाम श्री मधुकर देशमुख है। इनके जीवन साथी हैं श्री रामेश्वर दरवाई। इनकी स्कूली और कॉलेज की शिक्षा बैतूल में ही संपन्न हुई है। इन्होने एम एससी किया है। उन्होंने अभी-अभी लिखना आरम्भ किया है और ज्यादातर सामाजिक मुद्दों पर लिखती हैं। वे सरकारी सेवा में हैं। उनका वर्तमान पता है - तिलक वार्ड, कोठी बाजार, बैतूल।
माँ के रूप मेंरी दृष्टि में !
बच्चा 6 दिन का - मुस्कुराती माँ
बच्चा 6 महीने का - खुश होती माँ
बच्चा 1 साल का - गुनगुनाती माँ
बच्चा 2 साल का - खिलखिलाती माँ
बच्चा 3 साल का - दौडती भागती माँ
बच्चा 4 साल का - सर्वज्ञ (होमवर्क कराती) माँ
बच्चा 5 साल का - खेल खिलाती माँ
बच्चा 10 साल का - पती और बच्चों के बीच बैलैंस् बनाती माँ
बच्चा 15 साल का - (10th class) भविष्य के लिए चिंतीत माँ
बच्चा 18 साल का - (12th class) पढाई के लिए अपने से दूर करती माँ
बच्चा 20 साल का - उसे देख गर्वित होती माँ
बच्चा 25 साल का - नौकरी के लिए चिंतीत माँ
बच्चा 28 साल का - (शादी) भविष्य के लिए घबराई माँ
बच्चा 30 साल का - (नाती) fully energetic माँ
बच्चा 35 साल का - (वापसी) नासमझ माँ
बच्चा 40 साल का - पुराने जमाने की माँ
बच्चा 50 साल का - सलाह देने कि कोशिश करती माँ
बच्चा 55 साल का - चुप रहने कि कोशिश करती माँ
बच्चा 60 साल का - कैसी हो माँ, चलो खाना खाएंगे, सुनने को तरसती माँ
- वंदना!
9 . त्रिलोक शर्मा
संक्षिप्त परिचय : इनका जन्म 10 जनवरी 1975 को ग्राम हर्रई जिला नरसिंहपुर में हुआ था। इनकी माता जी का नाम श्रीमती कृष्णा शर्मा और पिताजी का नाम स्व.श्री चन्द्रशेखर जी शर्मा है। श्रीमती राखी शर्मा जी इनकी जीवन संगिनी हैं। स्कूल शिक्षा स्व.अंबिका प्रसाद शर्मा ,शा.उ.मा.विद्यालय, हर्रई में संपन्न हुई और इनकी महाविद्यालयीन शिक्षा शासकीय महाविद्यालय, हरदा में । इनका बचपन पूर्णतः ग्रामीण परिवेश में और अत्यंत अभावों में, तीन भाई बहिनों के साथ बीता। अभावों ने जो कुछ उस समय सिखाया उन्हीं के कारण जीवन में आगे की राह आसान होती चली गई । कुल मिलाकर उनकी नज़रों में उनका बचपन आज के बच्चों के बचपन से बहुत बेहतर रहा। इन्होने कक्षा 12 वी में , सन1992 से लिखना प्रारंभ किया । इनके लेखन का विषय अधिकतर प्रेम, प्रकृति , एवं समसामयिक विषय रहे हैं। अबतक इनकी स्थानीय पत्र-पत्रिकाओं में अनेक कविताएं प्रकाशित हो चुकी हैं। साझा संग्रह " साहित्य सुरभि " एवं ''भोर के तारे 2023 '' में इनकी रचनाएं प्रकाशित हो चुकी हैं । वे कहते हैं - '' अब तक साहित्य साधना में मेरी पत्नी राखी शर्मा, पुत्र अनय एवं पुत्री भूमिका का बहुत सहयोग रहा है। उनके सहयोग के बिना लेखन असंभव था । पुत्री भूमिका मेरी रचनाओं की पहली पाठक और पहली आलोचक है ।'' वर्तमान में वे स्थानीय माडल पब्लिक हायर सेकेंडरी स्कूल, हरदा में प्राचार्य के दायित्व का निर्वहन कर रहे हैं।इनका वर्तमान पता है - सरकार कालोनी, बायपास रोड, हरदा, मध्यप्रदेश।
10 . विद्या निर्गुडकर
संक्षिप्त परिचय : इनका जन्म 15 अगस्त 1951 को मध्यप्रदेश के ग्वालियर शहर में हुआ था। इनकी माता का नाम स्वर्गीय सुमती ओदक और पिता का नाम श्री भालचंद्र श्रीकृष्ण ओदक है और आज वे अपने जीवन साथी श्री श्रीपाद निर्गुडकर के साथ बैतूल के हमलापुर क्षेत्र में निवास करती हैं। इनकी स्कूल और कालेज की सम्पूर्ण शिक्षा नर्सरी से एम ए तक शिमला, हिमाचल प्रदेश मे संपन्न हुई । इन्होने सगीत (सितार) में एम ए किया है। उन्ही की जुबानी जानिए उनके बचपन की एक याद --- शिमला जैसी जगह पर पैदल ही चलना पडता था। एकबार माँ के साथ शापिंग करके घर लौट रही थी। मराठी मे ही बात चीत चल रही थी। पीछे से किसी ने मराठी मे ही हमसे पूछा आप कहाँ रहती हैं? और जब हमने उनका परिचय जाना तो हैरान रह गये। हमारे सामने विश्व विख्यात लेखक श्री प्रभाकर माच़वे थे । अपने कानों और आँखों पर विश्वास नहीं हो रहा था। प्रोफेसर माचवे एडवांस स्टडी इन्सटीट्यूट मे फैलो थे। इतने बड़े विद्वान से मिलकर मेरे तो खुशी का ठिकाना ही नहीं रहा। चलते-चलते बातें होती रहीं, पीछे से बन्दर आया और मेरे हाथ से फलों की पन्नी छीनकर पेड़ पर चढ गया और हम कुछ नहीं कर सके। माचवे साहब से बाद मे आकाशवाणी के माध्यम से मुलाकातें हुई । यहां तक की करीबी रिश्ता भी निकल आया। मैंने लेखन कार्य तो कालेज के समय ही शुरू था, पर उसको सही गति नोकरी के दौरान मिली जब मै आकाशवाणी मे कार्यरत हुई, तब मेरी कलम को सही मायने मे विस्तार मिला।
लंबे समय से विभिन्न समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं में उनकी कविताएं एवं कहानियां भारी संख्या में छपती रही हैं। उन्हे अब तक अनेक सम्मान और पुरस्कार मिल चुके हैं, जिनमे प्रमुख हैं - साहित्य क्रान्ति सम्मान, कलम क्रांति सम्मान, बैतूल, कलमपुत्र सम्मान, मेरठ, महाराज कृष्ण जैन स्मृति सम्मान, शिलांग, निसर्ग वाणी पत्रिका सम्मान, पुणे आदि। हाल ही में उनकी रचनाएं काव्य संग्रह "वंदे मातरम्" जर्मनी में तथा "भोर के तारे २०२३" बैतूल में प्रकाशित हुई हैं। वे अधिकतर सामाजिक मुद्दों और प्रकृति पर लिखती हैं। लेखन के अब तक के सफर उन्हे अपनी माताजी और पति का विशेष सहयोग प्राप्त हुआ है। साथ ही वे इसके लिए बैतूल के दिवंगत लेखक श्री रामचरण यादव का भी आभार प्रकट करती हैं। सेवानिवृत्ति के बाद वे 32, रॉयल रेसीडेंसी, हमलापुर चौक, बैतूल में निवास करती हैं।
मां तो मां है, मां जैसा कोई नहीं
प्रसूति की पीड़ा सहती,
हर कष्ट हंसकर सहती,
मुझे देखसंग में लेटा
सब कष्ट वह भूल जाती,
वह कोई और नहीं मां ही हो सकती
रात रात भर वही जागती
खुद गीले में सो कर भी
मुझे सदा सूखे में सुलाती
वह कोई और नहीं मा ही करती
गोदी में ले लिया थपकियां देती
मधुर मधुर लोरियां सुनाती
बाहों में झूला झूलाती
वह कोई और नहीं मा ही होती
आज जब खुद मां बनी तो
अनुभव उस सुख का मैं करती
ऋण तेरा नहीं मैं चुका सकती
संकल्प केवल आज मैं करती
कोशिश हरदम होगी मेरी
तुम जैसी मां बनने की
मां तो मां है, मां जैसा कोई नहीं।
विद्या निर्गुडकर
संक्षिप्त परिचय : इनका जन्म २७ मार्च 1963 को छिंदवाड़ा के नजदीक सिवनी में हुआ था। इनके जीवन साथी हैं श्री राजकुमार भलावी जी। वे अपने माता पिता की इकलौती संतान थीं तो उनका बचपन भी अकेले ही गुज़रा। लगभग २० वर्ष की उम्र से इन्होने लिखना आरम्भ किया और बैतूल के ही शासकीय जे एच कॉलेज से हिंदी साहित्य में एम ए किया। इनकी रचनाओं का विषय अक्सर होता है - जिंदगी, वक़्त, और दुनिया। वे अपने लेखन के सफर का सहयोगी अरुणा पाटणकर जी को मानती हैं। वे वर्तमान में पीसाजोडी, बैतूल में निवास करती हैं।
शहर !!!!!!
शहर खूबसूरत!
चुनिंदा घरों की खप्पर वाली छतें,
खुले रास्ते, इक्के दुक्के चलते राहगीर!
खो गये हैं कहीं !
मैदानों मे खेलते बच्चे!
सड़क किनारे फलो से लदे पेड़ों की पंक्तिया!
शोर न शराबा न धुआं न उड़ती धूल !
खो गये है कहीं!
स्पष्ट सुबहो - शाम कानो मे गूंजती
मंदिर की आरती, मस्जिद की अजान !
चक्कीयो की घरघराहट, सूपो की फटकन!
जैसे खो गये है कहीं!
त्योहारों पर उड़ती पकवानों की मीठी खुश्बू !
रंग गुलाल भुजलिया दीपों की कतारे!
गले मिलते लोग!
जैसे खो गये है कहीं!
हर इक चेहरा परिचित !
मुस्कानो से भरे अभिवादन!
जैसे खो गये है कहीं!
खो गया है मेरा शहर !
ऊँची इमारतो के बीच!
बाजारों में ढप गया दूकानो में!
खो गया है मेरा शहर!
वाहनों मशीनों की आवाजों में!
बस एक रुदन है अन्तर्मन की जो
सिर्फ़ सुनाई देता है मेरे कानों में!
वीणा भलावी
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Let's Learn English! आओ अंग्रेजी सीखें ! : Prahalad Parihar
1. Grammar : Parts of Speech (Part One) भाषा के अंग!
1. Noun :- The word which is the name of a person, place, thing, state, emotion, etc. is called Noun. वह शब्द जो किसी व्यक्ति, वस्तु, स्थान, भाव, अवस्था आदि का का नाम होता है संज्ञा कहलाता है।ex - Radha, Mohan, Table, Potato, Delhi, Nagpur, Sorrow, Joy, Solid, Liquid, Childhood, etc.
2. Pronoun :- The word which is used in place of noun is called Pronoun. वह शब्द जो संज्ञा के स्थान पर प्रयोग किया जाता है सर्वनाम कहलाता है. There are mainly four types of Pronouns :-
Subjective Objective Relative ReflexiveI Me. My Myself
मैं मुझे मेरा मैं स्वयं हीYou You Your Yourself
तुम तुम्हें तुम्हारा तुम स्वयं हीThey Them Their Themselves
वे उन्हें उनका वे स्वयं ही We Us Our Ourselves
हम हमें हमारा हम स्वयं हीHe Him His Himself
वह उसे उसका वह स्वयं हीShe Her Her's Herself
वह उसे उसका वह स्वयं हीIt It It's Itself
यह/वह इसे इसका यह स्वयं हीOne One One's Oneself
कोई किसे किसी का कोई स्वयं ही
Some more Pronouns : कुछ और सर्वनाम !
This यह, That वह, These ये, Those वो, Who जो,
Which जो, Whose जिसका, Whom जिसको, etc.
3. Verbs : क्रिया The word which shows the being or doing of anything is called Verb.वह शब्द जो किसी कार्य का होना या करना दर्शाता है क्रिया कहलाता है.
मैं मुझे मेरा मैं स्वयं ही
तुम तुम्हें तुम्हारा तुम स्वयं ही
वे उन्हें उनका वे स्वयं ही
हम हमें हमारा हम स्वयं ही
वह उसे उसका वह स्वयं ही
वह उसे उसका वह स्वयं ही
यह/वह इसे इसका यह स्वयं ही
कोई किसे किसी का कोई स्वयं ही
Some more Pronouns : कुछ और सर्वनाम !
This यह, That वह, These ये, Those वो, Who जो,
Which जो, Whose जिसका, Whom जिसको, etc.
There are two types of verbs mainly. 1. Helping Verbs : सहायक क्रिया Examples : Do करना Does करना Did किया Is है Am हूँ Are हैं Was था Were थे
Be होना Has है/ रखना Have है / रखना Had था Will/Shall क्रिया + गा /गे /गी
can सकना Could सका May सकना Might सका etc.
2. Main Verbs : मुख्य क्रिया
Examples : Read पढ़ना Write लिखना Teach पढ़ाना Play खेलना Sleep सोना
Awake जागना Run दौड़ना Stop रुकना Buy खरीदना Sell बेचना Give देना
Take लेना Send भेजना Call बुलाना Walk चलना Talk बात करना Speak बोलना listen सुनना Think सोचना Act काम करना Go जाना Come आना Put रखना etc..
2. English Speaking : Daily Routine दिनचर्या
a. When do you get up daily? आप रोज कब उठते हैं ?b. I get up at six a.m. मैं सुबह छह बजे उठता हूँ। a. Do you go to morning walk? क्या आप सुबह की सैर को जाते हैं ?b. Yes, I go. (No, I dont go.) हाँ मैं जाता हूँ। नहीं मैं नही जाता हूँ। a. What do you do after getting up? उठने के बाद आप क्या करते हैं?b. I do my morning activities. मैं अपनी सुबह की गतिविधियां निबटाता हूँ। a. Do you take tea? क्या आप चाय पीते हैं?b. Yes, I take tea. (No, I don't take tea.) हाँ मैं चाय पीता हूँ। नहीं मैं चाय नहीं पीता। a. When do you take tea? आप चाय कब पीते हैं?b. I take tea at seven O'clock. मैं सुबह सात बजे चाय पीता हूँ। a. When do you go to school? आप स्कूल कितने बजे जाते हैं ?b. I go to school at eleven O'clock. मैं सुबह ग्यारह बजे स्कूल जाता हूँ। a. What do you do at noon? आप दोपहर में क्या करते हैं ?b. I take rest. (I study at school.) मैं आराम करता हूँ। मैं स्कूल में पढाई करता हूँ। a. When do you return from school? आप स्कूल से कब लौटते हैं ?b. I return at five p.m. मैं शाम पांच बजे लौटता हूँ। a. What do you do in evening? आप शाम को क्या करते हैं ?b. I go to play/walk. मैं खेलने / घूमने जाता हूँ। a. When do you watch T.V.? आप टी वी कब देखते हैं ?b. I watch T.V. from seven to eight p.m. मैं शाम सात से आठ बजे तक टी वी देखता हूँ। a. When do you take dinner? आप रात का खाना कब खाते हैं ?b. I take dinner at 8:30 p.m. मैं रात साढ़े आठ बजे खाना खता हूँ। a. When do you study? आप पढाई कब करते हैं?b. I study from nine to eleven p.m. मैं रात नौ बजे से ग्यारह बजे तक पढता हूँ। a. When do you sleep? आप कब सोते हैं ?b. I sleep at eleven O'clock. मैं रात ग्यारह बजे सोता हूँ।3. Vocabulary : Forms of Verbs क्रियाओं के रूप !Present Past Past Participle
वर्तमान भूत काल निश्चित
Awake जागना Awoke जागा Awaken जाग चुका
Sleep सोना Slept सोया Slept सो चुका
Play खेलना Played खेला Played खेल चूका
Write लिखना Wrote लिखा Written लिख चुका
Read पढ़ना Read पढ़ा Read पढ़ चुका
Study पढ़ना Studied पढ़ा Studied पढ़ चुका
Give देना Gave दिया Given दे चूका
Take लेना Took लिया Taken ले चूका
Come आना Came आया Come आ चुका
Walk चलना Walked चला Walked चल चुका
Go जाना Went गया Gone जा चुका
Stop रुकना Stopped रुका Stopped रुक चुका
Call बुलाना Called बुलाया Called बुला चुका
Say कहना Said कहा Said कह चुका
Speak बोलना Spoke बोला Spoken बोल चुका
Buy खरीदना Bought ख़रीदा Bought खरीद चुका
Bring लाना Brought लाया Brought ला चुका
Pull खींचना Pulled खींचा Pulled खींच चुका
Push धकेलना Pushed धकेलना Pushed धकेल चुका
Sell बेचना Sold बेचा Sold बेच चुका
Bear सहन करना Bore सहन किया Born सहन कर चुका
Beat पीटना Beat पीटा Beaten पीट चुका
Bind बांधना Bound बांधा Bound बाँध चुका
Climb चढ़ना Climbed चढ़ा Climbed चढ़ चुका
Draw खींचना Drew खींचा Drawn खींच चुका
Forsake छोड़ना Forsook छोड़ा Forsaken छोड़ चुका
Freeze जमना Froze जमा Frozen जम चुका
Grind पीसना Ground पीसा Ground पीस चुका
Hang लटकाना Hanged लटकाया Hanged लटका चुका
Hide छुपाना Hid छुपाया Hidden छुपा चुका
Lie लेटना Lay लेटा Lain लेट चुका
Shine चमकना Shone चमका Shone चमक चुका
Shrink सिकुड़ना Shrank सिकुड़ा Shrunk सिकुड़ चुका
Slay क़त्ल करना Slew क़त्ल किया Slain क़त्ल कर चुका
Slide फिसलना Slid फिसला Slid फिसल चुका
Stick चिपकना Stuck चिपका Stuck चिपक चुका
Steal चुराना Stole चुराया Stolen चुरा चुका
Strive प्रयास करना Strove प्रयास किया Striven प्रयास कर चुका
Swear कसम खाना Swore कसम खाई Sworn कसम खा चुका
Tear फाड़ना Tore फाड़ा Torn फाड़ चुका
Wear पहनना Wore पहना Worn पहन चुका
Weave बुनना Wove बुना Woven बुन चुका
Bet शर्त लगाना Bet शर्त लगाई Bet शर्त लगा चुका
Cast फेकना Cast फेका Cast फेक चुका
Shed छोड़ना Shed छोड़ा Shed छोड़ चुका
Wed शादी करना Wedded शादी की Wedded शादी कर चुका
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Be होना Has है/ रखना Have है / रखना Had था Will/Shall क्रिया + गा /गे /गी
can सकना Could सका May सकना Might सका etc.
2. Main Verbs : मुख्य क्रिया
Examples : Read पढ़ना Write लिखना Teach पढ़ाना Play खेलना Sleep सोना
Awake जागना Run दौड़ना Stop रुकना Buy खरीदना Sell बेचना Give देना
Take लेना Send भेजना Call बुलाना Walk चलना Talk बात करना Speak बोलना
वर्तमान भूत काल निश्चित
Awake जागना Awoke जागा Awaken जाग चुका
Sleep सोना Slept सोया Slept सो चुका
Play खेलना Played खेला Played खेल चूका
Write लिखना Wrote लिखा Written लिख चुका
Read पढ़ना Read पढ़ा Read पढ़ चुका
Study पढ़ना Studied पढ़ा Studied पढ़ चुका
Give देना Gave दिया Given दे चूका
Take लेना Took लिया Taken ले चूका
Come आना Came आया Come आ चुका
Walk चलना Walked चला Walked चल चुका
Go जाना Went गया Gone जा चुका
Stop रुकना Stopped रुका Stopped रुक चुका
Call बुलाना Called बुलाया Called बुला चुका
Say कहना Said कहा Said कह चुका
Speak बोलना Spoke बोला Spoken बोल चुका
Buy खरीदना Bought ख़रीदा Bought खरीद चुका
Bring लाना Brought लाया Brought ला चुका
Pull खींचना Pulled खींचा Pulled खींच चुका
Push धकेलना Pushed धकेलना Pushed धकेल चुका
Sell बेचना Sold बेचा Sold बेच चुका
Bear सहन करना Bore सहन किया Born सहन कर चुका
Beat पीटना Beat पीटा Beaten पीट चुका
Bind बांधना Bound बांधा Bound बाँध चुका
Climb चढ़ना Climbed चढ़ा Climbed चढ़ चुका
Draw खींचना Drew खींचा Drawn खींच चुका
Forsake छोड़ना Forsook छोड़ा Forsaken छोड़ चुका
Freeze जमना Froze जमा Frozen जम चुका
Grind पीसना Ground पीसा Ground पीस चुका
Hang लटकाना Hanged लटकाया Hanged लटका चुका
Hide छुपाना Hid छुपाया Hidden छुपा चुका
Lie लेटना Lay लेटा Lain लेट चुका
Shine चमकना Shone चमका Shone चमक चुका
Shrink सिकुड़ना Shrank सिकुड़ा Shrunk सिकुड़ चुका
Slay क़त्ल करना Slew क़त्ल किया Slain क़त्ल कर चुका
Slide फिसलना Slid फिसला Slid फिसल चुका
Stick चिपकना Stuck चिपका Stuck चिपक चुका
Steal चुराना Stole चुराया Stolen चुरा चुका
Strive प्रयास करना Strove प्रयास किया Striven प्रयास कर चुका
Swear कसम खाना Swore कसम खाई Sworn कसम खा चुका
Tear फाड़ना Tore फाड़ा Torn फाड़ चुका
Wear पहनना Wore पहना Worn पहन चुका
Weave बुनना Wove बुना Woven बुन चुका
Bet शर्त लगाना Bet शर्त लगाई Bet शर्त लगा चुका
Cast फेकना Cast फेका Cast फेक चुका
Shed छोड़ना Shed छोड़ा Shed छोड़ चुका
Wed शादी करना Wedded शादी की Wedded शादी कर चुका











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