योग का दैनिक जीवन में महत्व ! 10 Yogas for our Daily Life
दैनिक जीवन में योग का महत्त्व
प्रहलाद परिहार
दोस्तों, योग हमारे जीवन में बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान रखता है. दैनिक जीवन में स्वास्थ को लेकर कई बार हम बहुत लापरवाह रहते हैं और आगे जाकर यह बात हमें बहुत भारी पड़ती है। इसी बात को ध्यान में रखकर यह ब्लॉग लिखा जा रहा है। इसमें बताये गए अभ्यास और योगासनों का यदि हम नियमित अभ्यास करें तो हम एक स्वस्थ जीवन जी सकते हैं।
सूर्योदय से सूर्यास्त तक की दिनचर्या कैसी होनी चाहिए ?
१. सुबह उठकर सबसे पहले बिना हाथ - मुँह धोये ताम्बे के लोटे का गुनगुना पानी पीना चाहिए।
२. नित्यकर्म से निवृत होकर सुबह आत्मशुद्धि एवं आत्मबल के लिए योग करें।
३. सुबह का भोजन / नाश्ता सात से नौ बजे के बीच कर लेना चाहिए , दोपहर का भोजन एक से दो बजे के बीच तथा शाम का भोजन पांच से सात बजे के बीच कर लेना चाहिए।
४. सुबह भरपूर भोजन करना चाहिए, दोपहर का भोजन सुबह से काम और शाम का भोजन दोपहर से भी काम होना चाहिए।
५. भोजन जमीन पर बैठकर ही करना चाहिए। भोजन के अंत में पानी पीना विष के सामान माना गया है। भोजन से लगभग एक घंटा पहले या बाद में पानी पिया जा सकता है। गाला साफ़ करने के लिए एक दो घूंट पानी पिया जा सकता है। पानी जब भी पियें घूंट घूंट कर के पियें। इस से व्यक्ति स्वस्थ एवं स्लिम रहता है।
६. हमेशा पूर्व या दक्षिण की ओर सिर करके सोना चाहिए। उत्तर की ओर सिर करके सोने से दबाव पड़ता है। सिर व शरीर पर संकुचन होता है जिससे नींद नहीं आती है। जबकि पूर्व या दक्षिण की ओर सर करके सोने से शरीर में फैलाव आता है और सुख की नींद आती है तथा मानसिक बीमारियां कभी नहीं आती हैं। उत्तर की ओर सर मृत्यु के बाद रखा जाता है।
७. मुँह ढककर नहीं सोना चाहिए। सांस नाक से ही लेना एवं छोड़ना चाहिए। जिन्हे नींद न आती हो वे सोने से पूर्व दस से पंद्रह मिनट तक लम्बी गहरी सांस लें तो नींद अच्छी आएगी।
स्नान की विधि
प्रतिदिन ताजे पानी से स्नान करना चाहिए। त्वचा हर समय शरीर के अंदर से विकार को बाहर निकलती रहती है। उस मैल को स्नान करके ही साफ़ कर सकते हैं और चमड़ी को शक्तिशाली बना सकते हैं। स्नान करना भी एक कला है।
स्नान शरीर को अच्छी तरह रगड़ रगड़ कर करना चाहिए। स्नान से पूर्व भी सारे शरीर को हाथों से हल्के हल्के रगड़ें। शरीर को थोड़ा गर्म कर लें फिर स्नान करें। साबुन का प्रयोग सप्ताह में एक बार से ज्यादा न करें। स्नान के बाद शरीर को तौलिये से अच्छी तरह पोंछ कर सूखा लें। स्नान ठन्डे पानी या कुनकुने गर्म पानी से ही करना चाहिए। अत्यंत गर्म या ठन्डे पानी का उपयोग नहीं करना चाहिए।
मालिश का महत्त्व
हर जीव चाहे वह पक्षी हो या जानवर मालिश की पद्धति को अपनाता है और अपने आप को स्वस्थ रखता है। शरीर को स्वस्थ रखने के लिए जिस प्रकार योगासन आवश्यक है, भोजन में सुधार आवश्यक है, उसी प्रकार मालिश को भी बहुत से रोगों को ठीक करने, नस-नाड़ियों को स्वस्थ बनाने, रक्त प्रवाह सुचारु रूप से चलाने, मांसपेशियों लचीला बनाने आदि के लिए प्रयोग में लाया जाता है। स्वास्थ को बनाये रखने में मालिश का बड़ा हाथ है। मालिश हमारी उम्र को लम्बा करती है। दुर्बल व्यक्ति के लिए तो यह रामबाण दवा है। मालिश के द्वारा हम शरीर को सीधे खुराक पहुंचते हैं। मालिश किसी से करवाने से ही अधिक लाभ होता है परन्तु हम स्वयं भी इसे कर सकते हैं। इसके बारे में विस्तार से मैं किसी और बलाग में लिखूंगा। आइये अब हम योग की चर्चा करें -
दैनिक जीवन के लिए उपयोगी कुछ योगासन
नियमित जीवन में योगासन करने से पहले कुछ वार्म - अप एक्सरसाइज कर लीं जाय तो बेहतर है जैसे - जम्पिंग, स्ट्रेचिंग, या कुछ और।
विधि : सीधे खड़े हो जाएँ, पावों के बीच एक से डेढ़ फ़ीट का फासला रखें। अपना दायां हाथ ऊपर आकाश की ओर उठायें। ऊपर वाले हाथ को ऊपर और नीचे वाले हाथ को नीचे की ओर खींचते हुए श्वास भरकर शरीर को तान दें। बाएं हाथ को बायीं टांग के साथ रखते हुए श्वाश छोड़ते हुए नीचे की ओर इस प्रकार झुकें कि आपकी टाँगें न मुड़े, हथेली जमीन पर पाँव के बायीं ओर आ जाये और जमीन को छुए। दाएं हाथ को कान के साथ रखते हुए भूमि के सामानांतर ले जाएँ। फिर धीरे धीरे वापस पहली स्थति में आ जाएँ। यही क्रिया बायां हाथ ऊपर करके दायीं ओर भी करें। ध्यान मणिपुर चक्र पर केंद्रित करना चाहिए।
लाभ : इस आसन से बड़ी आंत, जिगर तथा तिल्ली पर विशेष प्रभाव पड़ता है। मेरुदंड की पेशियों पर खिचाव पड़ने से लचक पैदा होती है। सौंदर्य बढ़ता है। बगल, कमर के पुट्ठों तथा पसलियों को मजबूती मिलती है। इससे कंठ के तंतुओं और ग्रंथियों का अच्छा व्यायाम हो जाता है।
विधि : पीठ के बल चित्त लेट जाएँ, सारे शरीर को तान लें, हथेलियां जमीन पर और शरीर के साथ सटी हुई हों। अब हाथों पर दबाव डालते हुए अपनी टांगों को धीरे धीरे श्वास भरते हुए हपर उठायें। यह ध्यान कि सिर नहीं उठेगा, पांव बाहर की ओर खींचे रहेंगे और टांगों को मुड़ने नहीं देना है। इस आसन में जितना धीरे धीरे आप अपनी टांगों को उठाएंगे उतना ही अधिक लाभ होगा। अब श्वास छोड़ते हुए, हाथों पर जोर देते हुए कमर को ऊपर से पीछे ले जा कर पैरों को जमीन पर लगा दें। पावों को आगे से आगे ले जाने का प्रयास करें। आधा मिनट या एक मिनट इस आसन में रुके रहें। अब धीरे धीरे रीढ़ के एक एक मोहरे को जमीन पर, पावों को पीछे की ओर तानते हुए टेकते जाएँ। फिर पावों को जमीन पर लाएं। वापस आते हुए भी सर को उठाना नहीं है। किसी प्रकार का झटका नहीं आना चाहिए। आते हुए शरीर को शिथिल कर विश्राम करें। इसे प्रतिदिन पांच से दस बार करें। ध्यान विशुद्धि चक्र पर रखें।
लाभ : इस आसन से सभी पाचन अंगों, रीढ़ के एक एक मोहने का व्यायाम होता है, उनमें लचक आती है और वे मजबूत होते हैं। गले की ग्रान्थियों को लाभ मिलता है। नाड़ी संस्थान सतेज व् स्वस्थ होता है। शरीर संतुलन में आता है, पेट व कमर की चर्बी काम होती यह है। याददास्त बढ़ती है। रक्त संचार तेज होता है और भूख बढ़ती है।
३. पाद पश्चिमोत्तासन
लाभ : इस आसन को करने से जठराग्नि प्रज्जवलित होती है और भूख बढ़ती है। तिल्ली और यकृत के विकार दूर होते हैं, मोटापा, सायटिका, बवासीर, कमर दर्द आदि की यह विशेष दवा है। इसे करने से पेट की चर्बी काम होती है। इस आसन से वायूद्दीपन होता है और वह मृत्यु का नाश करता है। इस आसन से शरीर का कद बढ़ता है।
४. चक्रासन
विधि : सीधे लेट जाएँ। टांगों को मोड़कर एड़ियां कूल्हों से लगा दें। पावों के बीच थोड़ा फासला रखें। अब हाथों को कन्धों पर इस प्रकार रखें कि हथेली नीचे की ओर तथा उँगलियों का रुख पावों की ओर रहे। अब पहले कमर को ऊपर उठायें और घुटनों को थोड़ा ले जाएँ। फिर हाथों और पावों पर दबाव डालते हुए पीठ को ऊपर उठा दें और शरीर को चक्र बनाकर हाथों और पावों पर संतुलन करें। गर्दन लटकी हुई, पांव का पंजा और पूरी हथेली जमीन पर रहे। पेट जितना ऊपर उठा सकते हैं उठायें। इस आसन में हाथों और पावों में जितना फासला हो उतना अच्छा है। ध्यान मणिपुर चक्र पर रखे।
लाभ : इस आसन से मेरुदंड तथा शरीर की समस्त नाड़ियों का शुद्धिकरण होकर यौगिक चक्र जाग्रत होते हैं। शरीर के सभी अंगों का व्यायाम होता है। शरीर तेजस्वी और फुर्तीला बनता है। स्त्रियों को मासिक धर्म में होने वाली पीड़ा में कमी आती है। इसके नियमित अभ्यास से वृद्धा अवस्था में भी कमर नहीं झुकती है। शरीर जवान बना रहता है।
5. धनुरासन
विधि : पेट के बल लेट जाएँ। घुटने तक अपनी टांगों को मोड़ दें और दोनों हाथों से अपने टखनों को पकड़ लें। पांचों उँगलियाँ एक तरफ रखें। पहले पावों को बाहर की तरफ खोलते हुए तथा श्वास को पेट से खाली करते हुए अपने घुटनों को ऊपर उठायें। अब आगे से साँस भरते हुए छाती को भी उठायें। पूरी तरह धनुष की स्थति में आ जाएँ। पूरी शक्ति लगाते हुए आगे और पीछे का भाग उठायें ताकि केवल पेट ही जमीन को छुए। डोलना नहीं है। धीरे धीरे श्वास छोड़ते हुए वापस आ जाएँ। वापस आते ही शिथिलासन बायीं ओर करें। घुटनो को मिलकर आसन करना अति लाभ दायक है। ध्यान स्वाधिष्ठान चक्र पर हो।
लाभ : इस आसन से रीढ़ की हड्डी पर पूरा दबाव पड़ता है , जिससे उसमे लचक आती है , गुर्दे स्वस्थ होते हैं। और पेट के विकार दूर होते हैं। इससे गले , पसलियों और फेफड़ों का विशेष व्यायाम होता है , मोटापा दूर करने में सहायता मिलती है , स्त्रियों के मासिक धर्म के विकार , गर्भाशय के रोग दूर होते हैं तथा डिम्ब ग्रंथियों को बल मिलता है। हृदय स्वस्थ होता है।
विधि : आसन पर सीधे लेट जाएँ। हाथों पर दबाव देते हुए ९० अंश तक ले जाएँ। यहाँ भी कुछ क्षण रुककर कमर को उठाते हुए टांगों को भूमि के सामानांतर करें। अब दोनों हाथों का सहारा पीठ को दें। हाथ जितने नीचे रहेंगे पीठ उतनी ही सीधी होगी। अब धीरे धीरे दोनों पावों को आकाश की ओर उठा दें। थोड़ी कंठ कूप में हो। कन्धों से लेकर पावं की उंगलिया तक शरीर एक सीध में रहे। कोहनियां अंदर की ओर रहें। पावों को ढीला करें। यह आसन श्वास भरकर ९० अंश तक लाएं। श्वास निकालकर भूमि के समानांतर ले जाएँ। फिर पूर्ण सर्वांग में आने पर श्वास स्वाभाविक स्थति में लें। इस आसन को धीरे धीरे अभ्यास बढाकर दस मिनट तक कर सकते हैं। वापिस आते हुए भी कोई झटका न लगे। पहले अपनी टांगों को भूमि के समानांतर करें। फिर पीठ को लगते हुए ९० अंश तक आएं और फिर पावों को धीरे धीरे भूमि पर ले जाएँ। नीचे आते ही विश्राम करें। ध्यान विशुद्ध चक्र पर हो।
लाभ : इसके करने से रक्त प्रवाह मस्तिष्क की ओर हो जाता है , जिससे शिराओं को बल मिलता है। यह टांसिल एवं गले के रोगों की अचूक दवा है इससे मस्तिष्क की शक्तियों का विकास होता है , नेत्र ज्योति बढ़ती है , वात रोग तथा रक्त विकार दूर होता है। त्वचा रोग ठीक होते हैं , मानसिक एकाग्रता आती है और यौवन प्रदान होता है। (आभार : आस्था चैनल एवं श्री रामदेव बाबा जी )
विधि : पद्मासन लगाएं, दोनों एड़ियां नाभि के नीचे मिलें। दोनों हाथों को पीछे पीठ की ओर ले जाएँ और बायीं कलाई को दाहिने हाथ से पकड़ लें। बाएं हाथ की मुट्ठी बंद कर लें। कमर सीधी , श्वास भरते हुए छाती तानें, हाथों का जोर नीचे की और रहे। अब धीरे धीरे श्वास छोड़ते हुए शरीर को सामने की ओर कमर से इस प्रकार झुकाते जाएँ कि आपका माथा जमीन पर लग जाये। कुछ क्षण बाह्य कुम्भक में रुके रहें , तत्पश्चात श्वास लेते हुए बहुत धीरे धीरे वापिस आ जाएँ। ध्यान मणिपुर चक्र पर रहे।
लाभ : इस आसन से टांगों और पिंडलियों में जमा मल उखड़ता है , टांगों के पुट्ठे मजबूत होते हैं। पाचन तंत्र पुष्ट होता है , अमाशय , यकृत , छोटी आंतें आदि प्रभावित होते हैं। रीढ़ की हड्डी , स्नायु कमर की पेशियों लाभ मिलता है। जोड़ों के दर्द में आराम मिलता है।
विधि : पद्मासन या सिद्धासन में बैठकर श्वास को शांत करें। फिर पूरे जोर से नासिका द्वारा श्वास को बाहर फेंके , श्वास लेने का प्रयास न करें। पहले धीरे धीरे फिर थोड़ी गति बढाकर जल्दी जल्दी भी कर सकते हैं। ध्यान रखना है की श्वास को केवल बाहर फेंकना है। रोज पंद्रह से बीस बार कपालभाति करें। अपनी शक्ति के अनुसार अभ्यास संख्या बढ़ा भी सकते हैं। हर बार अंत में बाह्य कुम्भक करें। अंत में श्वास स्वाभाविक चलने दें। ध्यान आज्ञा चक्र पर हो।
लाभ : इस प्राणायाम से ध्यान की एकाग्रता बढ़ती है , क्योंकि इससे कपल की नस-नाड़ियां शुद्ध होती हैं। ध्यान में बैठने से पहले कपालभाति करना चाहिए। इससे इन्द्रियां वश में आती हैं और मन शांत होता है। यह मस्तिष्क की नस - नाड़ियों को तनाव मुक्त करता है तथा सिर दर्द समाप्त करता है।
विधि : पद्मासन या सिद्धासन में बैठकर, साँस को सामान्य कर पहले अंगूठे से दायां नासाद्वार बंद करें और बाएं नासाद्वार से साँस लें फिर बाएं नासाद्वार को मध्यमा से बंद कर के दाएं नासाद्वार से साँस बाहर निकालें। अब पुनः दाएं नासाद्वार से साँस लें और इसे बंद कर के बाएं नासाद्वार से साँस बाहर निकालें। यह प्रक्रिया अपनी क्षमता अनुसार पांच से दस मिनट तक दोहरा सकते हैं।
लाभ : इससे सर्दी - खासी और मस्तिष्क के रोगों में लाभ होता है। बुढ़ापा दूर रहता है।
10. ध्यान
विधि : पद्मासन या सिद्धासन में बैठकर पहले ध्यान को श्वास - क्रिया पर लगाएं। श्वास को अंदर जाते और बाहर निकलते महसूस करें। मन को श्वास पर केंद्रित करें। फिर धीरे धीरे गंभीर श्वर में ग्यारह बार ॐ ध्वनि करें। फिर मन ही मन पांच बार ॐ की ध्वनि करें जिसमें आवाज न निकले। ध्यान ॐ की ध्वनि पर रहे। फिर मन्त्र का मन ही मन श्वास क्रिया के साथ मिलाकर जप करें, फिर ध्यान भूमध्य में ले आएं। ध्यान को भूमध्य में अपने इष्ट देवता पर लगाएं। मन ही मन अपने इष्ट देवता के दर्शन करें। फिर एक मिनट के लिए मन को निर्विकार कर दें। मन में कोई विचार न हो, विचारशून्य हो जाएँ, जैसे मन विश्राम कर रहा हो। अब पुनः मन में चेतना लाइए। ध्यान को अपने इष्ट देवता पर लगाइये, ध्यान भूमध्य में रहे। अब मन्त्र पर आइये और मन ही मन दो बार ॐ का जप करें। मन में जो भी विचार आ रहे हों उन्हें आने दें। अब बाहर की दुनिया के प्रति सजग हो जाएँ। फिर साँस सामान्य करते हुए साधना समाप्त करें।
लाभ : यह अति उत्तम साधना है। जब हम ध्यान में होते है तो हमारा शरीर निर्विकार हो जाता है। सभी महान और सफल लोग इसे अपनाते है। इस अवस्था में अक्सर हमें अपने जीवन के कठिन सवालों का जवाब मिल जाता है। इसे करने से मन को शांति मिलती है। अनिद्रा समाप्त होती है। आत्मविश्वाश बढ़ता है। (समाप्त)
(ड्राफ्टिंग जारी है अतः कृपया बलाग को रोज पढ़ें , धन्यवाद् !)










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