कविता : एक पिता का स्वप्न! Poem : Dream of a Father!

 प्रहलाद परिहार

कविता : एक पिता का स्वप्न!



कई रातों से जब मैं, 

नींद की आगोश में जाता हूं।

एक छोटी बच्ची मेरे,

सपने के आंगन में उतर आती है।


वो मासूम, प्यारी सी बच्ची,

जो कभी सोया करती थी 

चादर के एक टुकड़े पर 

अपनी मां के पास या मेरे पास।


नींद में वह, सुबह कभी यहां,

तो कभी वहां सोई हुई मिलती थी,

और ढूंढना पड़ता था उसे 

इधर उधर, ओस की बूंद की तरह।


रात भर वह मेरी स्मृति के आंगन में,

दौड़ लगाती फिरती है,

मैं भी थकता नहीं कभी,

उसके पीछे यहां वहां भागते।


फिर वह गायब हो जाती है अचानक!

मैं सोचता हूं कहां गई वह?

जोर देने पर समझ आता है,

मेरी वह बेटी अब बड़ी हो गई है।


कविता के पीछे की कहानी 

The above poem is a real experience of mine and written at 2 : 30 am of Tuesday 28/01/25. Due to this dream I was not able sleep for last two three nights.


इसे भी पढ़ें : विता : मेरी बेटी


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