काव्यगाथा ऑनलाइन पत्रिका / Kavygatha 27/08/24 !
काव्यगाथा ऑनलाइन पत्रिका!
Kavygatha Magazine!
संपादकीय
प्रिय मित्रों, पिछले कुछ दिनों से अपनी पत्रिका नियमित नहीं प्रकाशित हो पाई, इस बात का मुझे खेद है। इसके बहुत से कारणों में से एक कारण रहा की आप लोगों की रचनाएं कम संख्या में प्राप्त होती रही। आगे आशा करता हूं कि रचनाएं शीघ्र एवं ज्यादा संख्या में प्राप्त होंगी। आज एक बार फिर हम उत्साह से इस रचना संसार को आगे बढ़ाने का संकल्प लें!
इस समय दुनिया में बहुत कुछ घटित हो रहा है। हमे सचेत रहने की आवश्यकता है। हिंदुओं और महिलाओं को ताकतवर बनने की आवश्यकता है। पलायन किसी समस्या का हल नहीं है। अगर मरना ही है तो लड़कर मरो। और मरो ही क्यों? बल्कि दुश्मन को मारो। ओर हिंदुओं को सताने वालों को इतना मारो कि वो हमारे नाम से ही कांपने लगे। भागोगे कहां तक? इजराइल से जीना सीखो। जय हिन्द वंदे मातरम्!
1. अब क्या स्वतंत्रता दिवस मनाऊं मैं?
अब क्या स्वतंत्रता दिवस मनाऊं मैं?
जब जल रहे हैं हम मज़हब बांग्लादेश में।
अबलाओ से हो रही हैवानियत यहां,
लुट रही है आबरू, दुर्गा के देश में।
घोर निराशा नज़र आती चारो ओर,
उग रहे हैं खंजर, आदमी के भेष में।
क्या यूक्रेन, क्या इसराइल, क्या इंग्लैंड?
बन रहे हैं कई और देश, अपने ही देश में।
पहले कश्मीर, अब केरल और बंगाल,
लगा चुका है आग, जोगियों के केश में।
जो जाति जाति कर रहे हैं देख लो,
आइना दिखा रही है हिंसा, बंग देश में।
ये न सोचो पड़ोस की आग से मुझे क्या?
देर सबेर ले सकती है ये, हमको भी चपेट में।
एक हो जाओ, प्रतिकार करो, लिखा है,
गुरुओं की बानी में, उनके संदेश में।
हां मगर अभी मरा नहीं हूं मैं, तैयार हूं,
लड़ने को जीवन समर, देश परदेश में।
मौलिक रचना : प्रहलाद परिहार
समय रात १ बजे, तारीख १५ अगस्त २०२४
2. बेटू जब पहली बार गांव गया : परंपरा!
कहानी : विद्या निर्गुड़कर, बेतूल
(पूर्व रेडियो निदेशक)
• आज बहुत समय बाद गाँव आने का मौका मिला और वो भी शादी के मौके पे। ऑटो से उतरते ही आंगन के दरवाजे. उन पर सुन्दर बेलबूटी उकेरी हुई बीचो-बीच गणेश जी बने हुए, दरवाजे की सुन्दरता बढा रहे थे सुन्दर रंगोली आंगन की शोभा बढा रही थी ।
• इतने में शोभा छोटी बालटी में पानी लेकर आई और बोली जल्दी से पांव धोलो। हम तीनों ने पांव धोए और अन्दर आ गए।चांदी के गिलासों में पानी साथ में थोड़ा गूड़ दिया गया, मैने गिलास उठाया वैसे ही शोभा बोली अरे थोड़ा गूड़ खाके पानी पीओ धूप से आरहे हो। बेटू को ये सब अजीब लग रहा था ।इस पर कुएं पर नहाना भी बहुत अच्छा लगा । यह सब उसके लिये अलग था ।
• अब खाने की पंगत ज़मीन पर बैठ कर ,टेकने को लोढ आगे चौकी उसपे केले का पत्ता उसी पर खाना परोसा गया ।सभी भोजन करने लगे पर बेटू सब देखता रहा।और आहिस्ता से अपनी माँ से बोला---इनके यहाँ प्लेट नही है? माँ बोली ऐसा नहीं बेटा ,केले के पत्ते पर खाना खाना शुभ माना जाता है ।बेटू ने जैसे तैसे दो पूडी खाई।पर मन मे कई प्रश्न थे, आखिर उसकी माँ ने उसे समझाया यह बहुत अच्छा होता है इस पत्ते पर गरम खाना परोसने से इसमें के रसायन हमारे पेट में जाते हैं जो हमारे लिये फायदेमंद होते हैं ।इसमें सफाई अधिक रहती है ।पत्ते और उस पर बचा खाना जानवर खा लेते हैं ।हमारी पुरानी परंपरा यही है जिसे हम भूलते जा रहे हैं ।पुरानी परंपराए बहुत सोच समझ कर बनाई हुई है।
3. मां ताप्ती !
लेख : विजय कुमार नंदा, बेतूल
आपको पता है आज का दिन हम सभी लोगों के लिए इतना खास क्यू है क्योंकि आज हमारे प्यारे से जिले बैतूल के मुलताई में हम सबकी प्यारी और लाड़ली मां ताप्ती का जन्म हुआ था। तो चलो में आपको मां सूर्यपुत्री ताप्ती की जन्म कथा के बारे में कुछ बाते भी बता दूं
महाभारत के आदिपर्व में और पुराणों में सूर्य भगवान की पुत्री तापी, जो की हमारी मां ताप्ती के बारे में जानकारी देते हैं कि , सूर्य भगवान के द्वारा उत्पन्न की गईं है। ऐसा कहा जाता है कि भगवान सूर्य ने स्वयं की गर्मी या ताप से अपनी रक्षा करने के लिए ताप्ती को धरती पर अवतरित किया था।और तो और भविष्य पुराण में भी मां ताप्ती की महिमा के बारे में लिखा है कि छाया ने बहुत समय तक सूर्य की सेवा की। सूर्य से छाया को शनि और ताप्ती नामक 2 संतानें हुईं। सूर्य ने अपनी पुत्री को यह आशीर्वाद दिया था कि वह विनय पर्वत से पश्चिम दिशा की ओर बहेगी।
सूर्यपुत्री ताप्ती को भाई शनि यानी की शनिदेव ने आशीर्वाद दिया कि जो भी भाई-बहन ताप्ती में स्नान करेंगे, उनकी कभी भी अकाल मौत नहीं होगी।तब से हर वर्ष कार्तिक माह में सूर्यपुत्री ताप्ती के किनारे बसे धार्मिक स्थनो पर मेला लगता है जिसमें लाखों की संख्या में श्रद्धालु कार्तिक अमावस्या पर स्नान करने के लिए आते हैं।
मां ताप्ती से जुड़ी एक कहानी यह भी है कि एक बार राजा दशरथ के शब्दभेदी से श्रवण कुमार की जल भरते समय अकाल मृत्यु हो गई थी। पुत्र की मौत से दुखी श्रवण कुमार के माता-पिता ने राजा दशरथ को श्राप दिया था कि उसकी भी मृत्यु पुत्रमोह में होगी। राम के वनवास के बाद राजा दशरथ की भी पुत्रमोह में मृत्यु हो गई लेकिन उन्हें जो हत्या का श्राप मिला था जिसके चलते उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति नहीं हो सकी।और सनातन धर्म की एक परम्परा के अनुसार बड़े पुत्र के जीवित रहते अन्य पुत्र द्वारा किया गया अंतिम संस्कार एवं क्रियाकर्म मान्य नहीं है।ऐसे में राजा दशरथ को मोक्ष की प्राप्ती नहीं हो सकी थी। राम को राजा दशरथ द्वारा मां ताप्ती के बारे में बताई गई कथा का ज्ञान था इसलिए उन्होंने सूर्यपुत्री देवकन्या मां आदिगंगा ताप्ती के तट पर अपने अनुज लक्ष्मण एवं माता सीता की उपस्थिति में अपने पितरों एवं अपने पिता का तर्पण कार्य ताप्ती नदी में किया था।
भगवान श्रीराम ने बारह लिंग नामक स्थान पर रुककर जो की हमारे जिले के खेड़ी घाट के पास है यहां पर भगवान विश्वकर्मा की मदद से 12 लिंगों की आकृति ताप्ती के तट पर स्थित चट्टानों पर उकेरकर उनकी प्राण-प्रतिष्ठा की थी। बारहलिंग में आज भी ताप्ती स्नानागार जैसे कई ऐसे स्थान हैं, जो कि भगवान श्रीराम एवं माता सीता के यहां पर मौजूदगी के प्रमाण देते हैं।एक अन्य कथा के अनुसार दुर्वासा ऋषि ने देवलघाट नामक स्थान पर बीच ताप्ती नदी में स्थित एक चट्टान के नीचे से बने सुरंग द्वार से स्वर्ग को प्रस्थान किया था।
शास्त्रों में कहा गया है कि यदि भूलवश या अनजाने से किसी भी मृत देह की हड्डी ताप्ती के जल में प्रवाहित हो जाती है तो उस मृत आत्मा को मुक्ति मिल जाती है। जिस प्रकार महाकाल के दर्शन करने से अकाल मौत नहीं होती, ठीक उसी प्रकार किसी भी अकाल मौत की शिकार बनी देह की अस्थियां ताप्ती जल में प्रवाहित करने या उसका अनुसरण करके उसे ताप्ती जल में प्रवाहित किए जाने से अकाल मौत का शिकार बनी आत्मा को भी प्रेत योनि से मुक्ति मिल जाती है। ताप्ती नदी के बहते जल में बिना किसी विधि-विधान के यदि कोई भी व्यक्ति अतृप्त आत्मा को आमंत्रित करके उसे अपने दोनों हाथों में जल लेकर उसकी शांति एवं तृप्ति का संकल्प लेकर यदि उसे बहते जल में प्रवाहित कर देता है तो मृत व्यक्ति की आत्मा को मुक्ति मिल जाती है। ताप्ती नदी में सैकड़ों कुंड एवं जल प्रताप के साथ गहरे गड्ढे है जिसे हम डोह कहते है उनकी लंबाई को खाट में बुनी जाने वाली रस्सी को डालने के बाद भी नापा नहीं जा सका है। इस नदी पर यूं तो आज तक कोई भी बांध स्थायी रूप से टिक नहीं सका है। मुलताई के पास बना चंदोरा बांध इस बात का पर्याप्त आधार है कि कम जलधारा के बाद भी वह उसे 2 बार तहस-नहस कर चुकी है।
भले ही आज ताप्ती घाटी की सभ्यता के पर्याप्त सबूत न मिल पाए हों लेकिन ताप्ती के तपबल को आज भी कोई नकारने की हिम्मत नहीं कर सका है। पुराणों में लिखा है कि भगवान जटाशंकर भोलेनाथ की जटा से निकली भगीरथी गंगा मैया में 100 बार स्नान का, देवाधिदेव महादेव के नेत्रों से निकली 1 बूंद से जन्मीं शिव पुत्री कही जाने वाली मां नर्मदा के दर्शन का तथा मां ताप्ती के नाम का एक समान पुण्य एवं लाभ है।
सबसे मजे की बात तो यह है कि सूर्यपुत्री मां ताप्ती की सखी-सहेली कोई और न होकर चन्द्रदेव की पुत्री पूर्णा है, जो उसकी सहायक नदी के रूप में जानी-पहचानी जाती है। पूर्णा नदी भैंसदेही नगर के पश्चिम दिशा में स्थित काशी तालाब से निकलती है। प्रतिवर्ष लाखों की संख्या में श्रद्धालु लोग अमावस्या और पूर्णिमा के समय इन नदियों में नहाकर पूर्ण लाभ कमाते हैं।
किंवदंती के अनुसार सूर्य और चंद्र दोनों ही आपस में एक-दूसरे के विरोधी रहे हैं, ऐसे में दोनों की पुत्रियों का अनोखा मिलन आज भी लोगों की श्रद्धा का केंद्र बना हुआ है।और अंत में मैं आपको हम सब की प्यारी और लाड़ली पुण्य सलिला मां ताप्ती की ममता से परिचय करवाती हूं ,मां ताप्ती के दोनों किनारों पर अनेक प्रकार के लाखों वृक्ष , वनस्पति, जीव, जंतु, देव स्थान, तप स्थान और मनुष्य का बसेरा है मां ताप्ती सभी पर अपने स्नेह की, लाड दुलार की समान नजर रखती है कोई भेदभाव और पक्षपात नहीं करती और अपने जल प्रवाह के मार्ग से कभी भी किसी प्रकार की कोई हानि नहीं पहुचाई और ना ही कभी अपना रास्ता बदला,
एक बार की बात है कुछ ससुर पत्थर के रुप में मां ताप्ती के मार्ग में बाधा उत्पन्न करने आ गए पर मां ताप्ती ने न तो अपना मार्ग बदला और न अपने बच्चो को नुकसान पहुंचाया बल्कि उन असुर रूपी पत्थरों को चीर कर उनका भी कल्याण किया और तभी से यह माना जाता है की मां ताप्ती अपनी सभी संतानों से बहुत स्नेह करती है और कभी अपने बच्चों पर संकट नहीं आने देती। इसका आज भी प्रभाव ग्रामीण इलाकों में जनजीवन पर स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। वही दूसरी नदिया कभी बाढ़ तो कभी पानी की कमी तो कभी मार्ग बदलना ऐसे अनेक प्रकार से सभी के जीवन को प्रभावित करती है। पर हमारी मां ताप्ती ऐसा कुछ नहीं करती भले ही बदले में हम उसके किनारों को, तटो को, उसकी सुंदरता बढाने वाले वृक्षों को नष्ट कर दे पर फिर भी मां की ममता और प्रेम सदैव एक सा ही रहता है।
तो आइए आज इस पावन दिवस पर हम सब सपथ लेते हैं कि हम भी मां ताप्ती की सच्ची संतान के रुप में सदैव उसका ध्यान रखें और उसके तटों पर घाटों पर सफाई रखेंगे और वृक्षारोपण कर मां का सदैव प्राकृतिक श्रृंगार करेंगे।तो फिर बोलिए मेरे साथ पुण्य सलिला मां ताप्ती की जय ......................।
मां ताप्ती की जय......................।
4. आशा "अंकनी", बेतूल
कविता : जिंदगी के पड़ाव!
बढ़ती उम्र के साथ जिंदगी के ,
कितने पड़ाव गुजर जाते हैं,
हम हैरान परेशान से अचंभित,
खुद को देखते रह जाते हैं।
और जिंदगी के पड़ाव गुजरते जाते हैं।
पहला पड़ाव बचपन का,
नासमझी,नादानी,अल्हड़पन का,
इस दौर की खुशियां,मौज को,
बड़े होने की चाह में गंवाते हैं।
ऐसे ही जिंदगी के पड़ाव गुजरते जाते हैं।
दूसरा पड़ाव किशोर अवस्था का,
खुद को ही नहीं समझ पाते हैं,
भावों के बहते उद्वेग संग,
भविष्य की योजनाएं बनाते है।
ऐसे ही जिंदगी के पड़ाव गुजरते जाते हैं।
तीसरा पड़ाव युवावस्था का,
जिंदगी के सुनहरे सपने सजाते है,
परिवार समाज का हिस्सा बन,
स्वयं को जिम्मेदारी का एहसास कराते हैं।
ऐसे ही जिंदगी के पड़ाव गुजरते जाते हैं।
चौथा पड़ाव प्रौढ़ अवस्था का,
परिवार के निर्वहन में बिताते हैं,
परिवार की परेशानियां हल करते हुए,
खुद की जरूरतों को भी भूल जाते हैं।
ऐसे ही जिंदगी के पड़ाव गुजरते जाते हैं।
पांचवा पड़ाव वृध्द अवस्था का,
गुजरे हुए पलों संग "काश" में बिताते हैं,
जिंदगी के अनुभवों का अनमोल सार ,
उपहार रूप में संसार को दे जाते हैं।
ऐसे ही जिंदगी के पड़ाव गुजरते जाते हैं।
जिंदगी के गुजरते पड़ावों के बीच,
हमारे मन मस्तिष्क यूं उलझ जाते हैं,
जिंदगी की अवस्थाएं बदलती रहती है
पर अंतःकरण से हम वहीं रह जाते हैं।
ऐसे ही जिंदगी के पड़ाव गुजर जाते हैं!
5. बाकी सब ठीक ठाक है!
कविता : धर्मेंद्र कुमार खौसे, बेतूल बाजार
खेत में लग गई आग
फसल हुई जलकर राख
बाकी सब ठीक-ठाक है
भाई भाई में चल रही खटपट
बात बात पर निकल रहे लठ पे लठ
बाकी सब ठीक-ठाक है !
छह महीने से नहीं मिला वेतन
खाली हो गए घर के सारे बर्तन
बाकी सब ठीक-ठाक है
रिश्तेदार सारे मुंह फुला रहे हैं
एक दूसरे के घर आ रहे हैं ना जा रहे हैं
बाकी सब ठीक-ठाक है!
सरकारी योजनाओं में बंदरबांट चल रही है
अफसरों के घर नोटों की खाट डल रही है
बाकी सब ठीक-ठाक है !
नेता झूठे वादे पे वादे कर रहे हैं
जनता के ख्याली पुलाव पक रहे हैं
बाकी सब ठीक-ठाक है!
गरीब सड़कों पर अधनंगे घूम रहे हैं
अमीरों के कुत्ते कपड़े पहन के घूम रहे हैं
बाकी सब ठीक-ठाक है !
फिल्मों ने अश्लीलता की हदें पार कर दी है
संस्कारों की अस्मिता भी तार-तार कर दी है
बाकी सब ठीक-ठाक है !
नीचे से ऊपर तक सब घूस ले रहे हैं
जनता का सारा खून चूस ले रहे हैं
बाकी सब ठीक-ठाक है !
छोड़ो दूसरों की बुराइयों की थैली
अपनी देखो चादर है कितनी मैली
अपने को क्या किसी से मतलब है
बात अब तो यही गौरतलब है
बाकी सब ठीक-ठाक है !
औरों को जो करना है वो करें
हम जो भी करें बस सही करे
करे ना औरों का भरोसा
गांठ बांध ले बात हमेशा
दूसरों के घर की खीर से
खिचड़ी अपनी अच्छी है
औरों से क्या लेना देना
अपनी नियत सच्ची है
अपना फकीराना ठाट बाट है
बाकी सब ठीक-ठाक है।
6. दरवाजे पर बैठी होगी बहना!
कविता : धर्मेंद्र कुमार खौसे
घर में सजी होगी अल्पना
कर रही होगी कल्पना
रास्ता ताक रहे होंगे नैना
दरवाजे पर बैठी होगी बहना
भेजी होगी मेरी प्यारी मैया
आएगा मेरा प्यारा भैया
ले जाएगा मुझको मेरे अंगना
सबसे फिर होगा मेरा मिलना
सखियां होंगी संग मेरे
बचपन में हम संग खेले
सावन के हमने झूले झूले
देखे थे संग कई कई मेले
भाई की कलाई होगी
मुंह में मिठाई होगी
पहले सी नहीं लड़ाई होगी
मेरे हाथों भाई की कमाई होगी
पर नियति को कहां मंजूर था
मैं बहन से बड़ी दूर था
नहीं पहुंच सकूंगा उस तक
मैं बड़ा मजबूर था
सीमा पर देता पहरा हूँ
यादों में खोया गहरा हूँ
गोलियों की बौछारों में भी
नहीं डरा,खड़ा ठहरा हूँ
नहीं आ सकूंँगा माफ करना
मुझको सब बहनों की लाज हैं रखना
खतरे में है देश बहना
तुम मेरा इंतजार न करना
होगा तुमको दुख बड़ा
पर हृदय अपना कर लेना कड़ा
सोच लेना मेरे लिए नहीं
भाई मेरा सब बहनों के लिए लड़ा
बहन तेरी राखी याद आएगी
प्यार तेरा याद दिलाएगी
अंतिम सांँस तक लड़ने का
हौसला मुझ में जगाएगी
इस रक्षाबंधन को ना मना पाऊंँगा
इस जन्म तो शायद नहीं आ पाऊंँगा
वादा रहा तेरे भाई का बहन तुझसे
अगले जन्म में तेरा ही भाई बन आऊँगा
मन में थोड़ा धैर्य रखना
भाई पर अपने गर्व करना
हुआ शहीद भाई तुम्हारा
अंतिम विदाई मेरी तुम पर्व करना
रखना हल्दी कुमकुम चंदन
राखी बचपन वाली चमचम
तिरंगे में लिपटा हुआ मैं इस बार
स्वर्ग में ही मनाऊँगा रक्षाबंधन।
स्वर्ग में ही मनाऊँगा रक्षाबंधन।।
7. गीत : जय श्री कृष्ण
डॉ. प्रतिभा द्विवेदी, भोपाल
ब्रजमंडल में धूम है,
जनम लियो गोपाल ।
बांकी झांकी देख के,
गोकुल भयो निहाल ।।
लेत बलैंया यशोमति,
सखियां गायें गीत ।
छलकन लागी नयन से,
उर न समाये प्रीत ।।
मोर मुकुट कर बांसुरी ,
सुघर सलोने गात ।
अनुपम छवि गोपालकी,
नैनन नहीं समात।।
बाज उठी मुरली मधुर,
कालिंदी के तीर ।
मनभावन छवि लाल की ,
हर ले सारी पीर।।
लीला नंदकिशोर की ,
बरसे सुख मकरंद ।
अंतर्मन लखि सूर ने,
रचे मनोहर छंद ।।





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