गुरु पूर्णिमा का महत्व! Guru Purnima!
गुरु पूर्णिमा क्यों मनाते हैं?
ऐसा कहा जाता है कि लगभग 3000 ई.पूर्व पहले आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा के दिन महाभारत के रचयिता वेद व्यास का जन्म हुआ था। वेद व्यास जी के सम्मान में हर वर्ष आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा का दिन बनाया जाता है। मान्यता है कि इसी दिन वेद व्यास जी ने भागवत पुराण का ज्ञान भी दिया था। गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा नाम से भी जाना जाता है।
गुरु पूर्णिमा के दिन अपने गुरुजनों के सम्मान करने और उन्हें गुरु दक्षिणा देने का बड़ा महत्व कहा गया है। इस दिन अपने गुरु और गुरु तुल्य वरिष्ठजनों को मान-सम्मान देते हुए उनका आभार जरूर व्यक्त करना चाहिए तथा जीवन में मार्गदर्शन करने के लिए उन्हें गुरु दक्षिणा भी देना चाहिए। गुरु पूर्णिमा के दिन व्रत, दान-पुण्य और पूजा-पाठ का भी बहुत महत्व माना गया है। ऐसा कहा जाता है कि जो मनुष्य गुरु पूर्णिमा का व्रत रखता है और दान-पुण्य करता है, उसे जीवन में ज्ञान की प्राप्ति होती है और जीवन के बाद मोक्ष मिलता है।
गुरु पूर्णिमा की कथा!
ऐसा कहा जाता है कि आषाढ़ महीने की पूर्णिमा को महाभारत के रचयिता वेद व्यास का जन्म हुआ था। बचपन में वेद व्यास जी ने अपने माता-पिता से भगवान के दर्शन की इच्छा ज़ाहिर की, लेकिन उनकी माता सत्यवती ने उनकी इच्छा पूरी करने से मना कर दिया। वेद व्यास जी हठ करने लगे, तो माता ने उन्हें वन जाने की आज्ञा दे दी। जाते समय माता ने वेद व्यास जी से कहा कि "जब घर की याद आए, तो लौट आना" इसके बाद वेद व्यास जी तपस्या करने के लिए वन चले गए। वन में उन्होंने बहुत समय तक कठोर तपस्या की और इस तपस्या के प्रभाव से वेद व्यास जी को संस्कृत भाषा का बहुत ज्ञान हो गया। फिर उन्होंने चारों वेदों का विस्तार किया और उन्होंने महाभारत, अठारह पुराण और ब्रह्मसूत्र की रचना भी की। महर्षि वेद व्यास जी को चारों वेदों का ज्ञान था, इसीलिए गुरु पूर्णिमा के दिन गुरु की पूजा करने की परम्परा चली आ रही है।

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