हिंदू नव वर्ष कब से आरंभ हुआ? Hindu New Year and Gudi Padwa!

 

हिंदू नव वर्ष एवं गुड़ी पड़वा 
Hindu New Year and Gudi Padwa!





प्रस्तावना : नवरात्रि हमारा का एक प्रमुख पर्व है। इन नौ रातों और दस दिनों के दौरान, शक्ति अथवा देवी की पूजा की जाती है। साल में चार बार नवरात्रि आते हैं - माघ, चैत्र, आषाढ़ और अश्विन माह में। इनमें से माघ और आषाढ़ में आने वाले नवरात्रि को गुप्त नवरात्रि कहा जाता है। यह चंद्र-आधारित हिंदू महीनों में चैत्र, माघ, आषाढ़ और अश्विन (क्वार) प्रतिपदा से नवमी तक मनाया जाता है। चैत्र मास में वासंतिक अथवा वासंतीय और दूसरा अश्विन मास में शारदीय नवरात्र, माघ और आषाढ़ मास की नवरात्रि गुप्त नवरात्रि होती हैं। शारदीय नवरात्र का समापन दशहरा को दुर्गा प्रतिमा के विसर्जन के साथ होता है। नवरात्रि में तीन-तीन माह का अंतर होता है । हिन्दू कैलेंडर के हिसाब से सबसे पहले चैत्र मास में 9 दिन चैत्र नवरात्रि के होते है और उसके तीन माह बाद आषाढ़ में गुप्त नवरात्रे आते है । फिर उसके तीन माह बाद शारदीय नवरात्रे आते हैं फिर अंत में गुप्त नवरात्रे माघ माह में आते है ।



गुड़ी पड़वा क्या है ? ( हिंदू तथा मराठी नववर्ष ) के दिन हिन्दू नव सम्वत का आरम्भ माना जाता है। चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को गुड़ी पड़वा या वर्ष प्रतिपदा या उगादि कहा जाता है। इस दिन हिन्दु नववर्ष का आरम्भ होता है। 'गुड़ी' का अर्थ 'विजय पताका' होता है। ऐसा कहा जाता है कि मराठी राजा शालिवाहन ने मिट्टी के सैनिकों की सेना से प्रभावी शत्रुओं (शक) का पराजित किया था। इस विजय के प्रतीक रूप में शालिवाहन शक का प्रारंभ इसी दिन से होता है। ‘युग‘ और ‘आदि‘ शब्दों की संधि से बना है ‘युगादि‘। इसी दिन चैत्र नवरात्रि का प्रारम्भ होता है।


नव वर्ष का प्रारम्भ प्रतिपदा से ही क्यों माना जाता है ?


            भारतीय नववर्ष का प्रारम्भ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से ही माना जाता है और इसी दिन से ग्रहों, वारों, मासों और संवत्सरों का प्रारंभ गणितीय और खगोल शास्त्रीय संगणना के अनुसार माना जाता है। आज भी जनमानस से जुड़ी हुई यही शास्त्र सम्मत कालगणना व्यावहारिकता की कसौटी पर खरी उतरी है। इसे राष्ट्रीय गौरवशाली परंपरा का प्रतीक माना जाता है। विक्रमी संवत किसी संकुचित विचारधारा या पंथाश्रित विचारधारा नहीं है। हिन्दू इसको पंथ निरपेक्ष रूप में देखते हैं। यह संवत्सर किसी देवी, देवता या महान पुरुष के जन्म पर आधारित नहीं है। यह संवत्सर ईस्वी या हिजरी सन की तरह किसी जाति अथवा संप्रदाय विशेष का नहीं है। हमारी गौरवशाली परंपरा विशुद्ध अर्थो में प्रकृति के खगोलशास्त्रीय सिद्धातों पर आधारित है और भारतीय कालगणना का आधार पूर्णतया पंथ निरपेक्ष है। प्रतिपदा का यह शुभ दिन भारत राष्ट्र की गौरवशाली परंपरा का प्रतीक है। ब्रह्म पुराण के अनुसार चैत्रमास के प्रथम दिन ही ब्रह्मा ने सृष्टि संरचना प्रारंभ की थी। यह भारतीयों की मान्यता है, इसीलिए हम चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से नववर्षारंभ मानते हैं। आज भी भारत में प्रकृति, शिक्षा तथा राजकीय कोष आदि के संचालन में मार्च, अप्रैल के रूप में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ही देखते हैं। यह समय दो ऋतुओं का संधिकाल है। इसमें रातें छोटी और दिन बड़े होने लगते हैं। प्रकृति नया रूप धर लेती है। प्रतीत होता है कि प्रकृति नवपल्लव धारण कर नव संरचना के लिए ऊर्जस्वित होती है। मानव, पशु-पक्षी, यहां तक कि जड़-चेतन प्रकृति भी प्रमाद और आलस्य को त्याग सचेतन हो जाती है। वसंतोत्सव का भी यही आधार है। इसी समय बर्फ पिघलने लगती है। आमों पर बौर आने लगता है। प्रकृति की हरीतिमा नवजीवन का प्रतीक बनकर हमारे जीवन से जुड़ जाती है।

                    प्रतिपदा के दिन आज से 20८०/८१ वर्ष पूर्व उज्जयनी नरेश महाराज विक्रमादित्य ने विदेशी आक्रांत शकों से भारत-भूमि का रक्षण किया था और इसी दिन से काल गणना प्रारंभ की थी। इसीलिए उपकृत राष्ट्र ने भी उन्हीं महाराज के नाम से इसे विक्रमी संवत कह कर पुकारा। महाराज विक्रमादित्य ने आज से 20८०/८१ वर्ष पूर्व इस राष्ट्र को सुसंगठित कर शकों की शक्ति का उन्मूलन कर उन्हें देश से भगा दिया था और उनके ही मूल स्थान अरब में विजयश्री प्राप्त की थी। साथ ही यवन, हूण, तुषार, पारसिक तथा कंबोज देशों पर अपनी विजय ध्वजा फहराई थी। उसी के स्मृति स्वरूप यह प्रतिपदा संवत्सर के रूप में मनाई जाती है। इसी दिन मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान रामचंद्र के राज्याभिषेक के रूप में मनाया जाता है। यह दिन ही वास्तव में असत्य पर सत्य की विजय दिलाने वाला है। इसी दिन महाराज युधिष्टिर का भी राज्याभिषेक हुआ था। आज यह दिन हमारे सामाजिक और धार्मिक कार्यों के अनुष्ठान की धुरी के रूप में तिथि बनाकर मान्यता प्राप्त कर चुका है। यह राष्ट्रीय स्वाभिमान और सांस्कृतिक धरोहर को बचाने वाला पुण्य दिवस है। हम प्रतिपदा से प्रारंभ कर इन नौ दिन में अगले छह मास के लिए शक्ति संचय करते हैं, फिर अश्विन मास की नवरात्रि में शेष छह मास के लिए शक्ति संचय करते हैं। कहा जाता है कि सन 78 में हूण वंश के सम्राट कनिष्क ने अपने राज्यारोहण के समय चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन ही शक संवत शुरू किया था ।


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