मंत्रों के अर्थ : गायत्री मंत्र और महामृत्युंजय मंत्र! / Gayatri Mantra!
गायत्री मंत्र:/
Gayatri Mantra!
ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।
Gayatri Mantra: हिंदू धर्म में गायत्री मंत्र को महामंत्र भी कहा जाता है। इसका महत्व सर्वोपरि माना गया है। मान्यता है कि दुनिया की पहली पुस्तक ऋग्वेद की शुरुआत इसी मंत्र से होती है। ब्रह्मा जी ने चार वेदों की रचना से पहले इस मंत्र की रचना की थी। क्या आप जानते हैं कि गायत्री मंत्र के तीन अर्थ होते हैं? आइए जानते हैं इस मंत्र के मतलब।
पहला अर्थ: हम पृथ्वीलोक, भुवर्लोक और स्वर्लोक में व्याप्त उस सृष्टिकर्ता प्रकाशमान परमात्मा के तेज का ध्यान करते हैं। हमारी बुद्धि को सन्मार्ग की तरफ चलने के लिए परमात्मा का तेज प्रेरित करे।
दूसरा अर्थ: उस दुःखनाशक, तेजस्वी, पापनाशक, प्राणस्वरूप, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, देवस्वरूप परमात्मा को हम अंत:करण में धारण करें। हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में परमात्मा प्रेरित करे।
तीसरा अर्थ: ॐ: सर्वरक्षक परमात्मा, भू: प्राणों से प्यारा, भुव: दुख विनाशक, स्व: सुखस्वरूप है, तत्: उस, सवितु: उत्पादक, प्रकाशक, प्रेरक, वरेण्य: वरने योग्य, भर्गो: शुद्ध विज्ञान स्वरूप का, देवस्य: देव के, धीमहि: हम ध्यान करें, धियो: बुद्धि को, यो: जो, न: हमारी, प्रचोदयात्: शुभ कार्यों में प्रेरित करें।
गायत्री मंत्र की शक्ति का रहस्य :
मान्यता है कि अगर इस मंत्र का लगातार जपा जाए तो इससे मस्तिष्क का तंत्र बदल जाता है। इससे मानसिक शक्ति बढ़ती है और नकारात्मक शक्तियां जपकर्ता से दूर चली जाती हैं। एक पौराणिक कथा के अनुसार, ऋषि विश्वामित्र ने इस मंत्र के बल पर ही एक नई सृष्टि का निर्माण किया था। इसी से पता चलता है कि यह मंत्र कितना शक्तिशाली है। ऐसा कहा जाता है कि इसके हर अक्षर के उच्चारण से एक देवता का आह्वान होता है।
महामृत्युंजय मंत्र !
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् ।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॥
महामृत्युंजय मंत्र का हिंदी अर्थ
हम उस त्रिनेत्र को पूजते हैं, जो सुगंधित हैं और हमारा पोषण करता है। जैसे फल शाखा के बंधन से मुक्त हो जाता है वैसे ही हम भी मृत्यु और नश्वरता से मुक्त हो जाएं।
यदि हम भयमुक्त, रोगमुक्त जिंदगी चाहते हैं और अकाल मृत्यु के डर से खुद को दूर करना चाहते हैं, तो हमे भगवान शिव के सबसे प्रिय ‘महामृत्युंजय मंत्र’ का जाप करना चाहिए। महामृत्युंजय सबसे शक्तिशाली मंत्रों में से एक है, जिसका जाप करने से भगवान शिव बेहद प्रसन्न होते हैं। महामृत्युंजय मंत्र का उल्लेख ऋग्वेद से लेकर यजुर्वेद तक में मिलता है। इसके अलावा शिवपुराण और अन्य ग्रंथो में भी इसके महत्व के बारे में विस्तार से बताया गया है। संस्कृत में महामृत्युंजय उस व्यक्ति को कहते हैं, जो मृत्यु को जीतने वाला हो। इसलिए भगवान शिव की स्तुति के लिए महामृत्युंजय मंत्र का जाप किया जाता है। शिवपुराण के अनुसार महामृत्युंजय मंत्र के जाप से संसार के सभी कष्ट से मुक्ति मिलती है। साथ ही इससे जीवन में सकारात्मकता बढ़ती है। तो
कब और कैसे करें महामृत्युंजय मंत्र का जाप ?
ऐसा कहा जाता है कि महामृत्युंजय मंत्र का जाप रोजाना सुबह 4 बजे या घर से निकलने से पहले करना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि ये मंत्र नकारात्मकता को दूर करने में मदद करता है। शिवपुराण के अनुसार इस मंत्र का 108 बार जाप करने से व्यक्ति को अधिक से अधिक लाभ प्राप्त हो सकता है।


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