कहानी : रेस्ट हाऊस! Rest House!
रेस्ट हाउस ! (कहानी : प्रहलाद परिहार)
अजीत और सुजीत दोनों अच्छे मित्र थे । वे एक कोयला खदान वाले क्षेत्र में रहते थे। वहां कई कोयला खदानें थी। वह एक शांतिपूर्ण कस्बा था, जहां चारों ओर पहाड़, नदियां, झरने एवं हरियाली थी। दोनों सरकारी कंपनी के एक स्कूल में पढ़ते थे। वे कक्षा आठवीं के विद्यार्थी थे। चारों तरफ उपस्थित प्राकृतिक सौंदर्य के बीच बड़े आनंद से रहते थे । जब कभी भी बारिश होती तो नगर का दृश्य बड़ा ही मनोरम हो जाता था। बारिश की फुहार से सड़कें, मकान और जंगल सब ढक जाते थे। बड़ा ही सुहाना वातावरण बन जाता था । वे दोनों बारिश में खूब खेलते थे ।
उस क्षेत्र के लोग बड़े ही सीधे-साधे थे । भारत के अलग-अलग क्षेत्रों से लोग रोजगार की तलाश में वहां आकर बसे थे । वह एक तरह से मीनि भारत था । पूरा दिन मजदूर जमीन के कई फीट नीचे खदान में काम करते और शाम को अपने अपने घरों को लौट जाते । ज्यादातर लोगों में एक बड़ी समानता थी कि वे शराब का सेवन अवश्य करते थे । स्कूल के पास ही छोटा सा बाजार था, जहां ज्यादातर जरूरत की चीजें मिल जाया करती थी । सभी कुछ अच्छा और शांत था । परंतु इस खामोशी के पीछे कई अन्य कहानियां भी छिपी हुई थी। लेकिन बच्चों को इन सब बातों से क्या?
ठंड की ऋतु में वे देखते थे पक्षियों को पेड़ों पर, घरों पर और बगीचों में घोंसले बनाते हुए । कुछ लोगों ने तो नगर में अपने झोपड़ों के आसपास पड़ी खाली जगह में खेती करना भी शुरू कर दिया था। वहां लोगों ने पपीते, अमरुद, केले आदि के पेड़ लगा लिए थे । और तो और लोग अपने बगीचे में सब्जियों के अलावा गन्ने भी लगाते थे । हर मौसम की फसल यहां होती थी । यह बड़ा ही सुंदर और प्यारा नगर था ।
परंतु कोयले की खदानें होने के कारण गर्मियों में यहां बहुत गर्मी लगती थी । ऐसे में यह बाग बगीचे बड़ी राहत देते थे । उस समय सभी बच्चों की गर्मियों की छुट्टियां हुआ करती थी । कुछ बच्चे अपने रिश्तेदारों के यहां या अपने पैतृक गांव चले जाया करते थे । महिलाएं, लड़कियां और छोटे बच्चे भी आसपास के जंगलों में महुआ तेंदू अचार आदि बिनने जाया करते थे । गर्मी के 3 महीने बड़े भारी गुजरते थे। कुछ छोटे-छोटे तालाबों में लोग तैरने भी जाते थे । अजीत और सुजीत भी जंगल में घूमने जाया करते थे । वे लोग अपने अन्य साथियों के साथ झुंड में आसपास की पहाड़ियों, नदियों और कभी-कभी तो डैम तक भी घूम आया करते थे, जो कि उनके नगर से कुछ ही दूरी पर था । इस कोयला नगरी के पास एक और नगर था जो अपने बिजली घर के लिए पूरे राज्य में प्रसिद्ध था। कोयला नगरी का ज्यादातर कोयला यहां बिजली बनाने के काम लाया जाता था । यह नगर उसी डैम के किनारे बसा हुआ था ।
बच्चों के लिए गर्मियां इतनी भी बुरी नहीं होती थी क्योंकि सड़कों के किनारे जंगलों में बहुत से पेड़ होते थे जिनमें रंगीन एवं सुंदर पत्तियां उन दिनों भी लगी रहती थी । जिससे वातावरण बड़ा ही मनमोहक हो जाता था । पतझड़ तो जैसे किसी कवि की कविता लगता था ।
ऐसे ही एक दिन दोपहर में दोनों मित्र साइकिल से पास वाले शहर के ऑफिसर क्लब पहुंच गए जो कि बिजली घर के पास डैम के किनारे ही बना हुआ था । एक सड़क उस टीले पर बने हुए रेस्ट हाउस पर गोल-गोल घूमती हुई जाती थी और डैम के किनारे एक सड़क सांप की तरह आड़ी तिरछी होते हुए डैम के मेन गेट पर तरफ जाती थी । वे दोनों अपनी मस्ती में साइकिल चलाते हुए उस रेस्ट हाउस के ऊपर पहुंच गए। वहां एक पहरेदार के अलावा कोई नहीं था । वहां से नीचे का दृश्य बड़ा ही सुंदर लग रहा था । दोनों बहुत खुश थे । पहरेदार ने उन्हें वहां देखकर पूछा कि वे वहां क्यों आए थे तो वह दोनों कुछ ना बोल सके और नीचे की तरफ जाने लगे । अजीत ने कहा कि वह साइकिल चलाएगा पर सुजीत ने कहा कि यहां इतने खतरनाक उतार में साइकिल चलाना ठीक ना होगा परंतु अजीत नहीं माना और सुजीत को बिठाकर साइकिल नीचे की तरफ चलाने लगा । वे दोनों मस्ती के मूड में थे और गीत गा रहे थे । अचानक अजीत का साइकिल पर से नियंत्रण खो गया और साइकिल बहुत तेजी से अनियंत्रित होकर नीचे की तरफ लुढ़क ने लगी । सड़क पर अत्यंत खतरनाक मोड़ थे । अजीत ने साइकिल संभालने की बहुत कोशिश की लेकिन वह संभाल ना सका और साइकिल जाकर एक लोहे की रेलिंग से टकरा गई। दोनों चीखते हुए नीचे गिर गए ।
वे दोनों एक दूसरे पर चिल्ला रहे थे । दोनों एक दूसरे को गालियां दे रहे थे । दोनों को चोटे आई । उनकी साइकिल बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गई और इस स्थिति में ना रही कि उसे चलाया जा सके । उठने के बाद दोनों ने रेलिंग के उस तरफ देखा तो दोनों सकते में आ गए क्योंकि उस तरफ एक गहरी खाई थी। यदि वह रेलिंग से टकराकर इस तरफ ना गिरे होते तो उस तरफ तो मौत ही उनका इंतजार कर रही थी । किसी तरह दोनों धीरे-धीरे अपने नजर वापस आ गए लेकिन वे सीधे घर ना जाकर पहले एक साइकिल स्टोर पर गए और वहां अपनी साइकिल सुधरवाई । जैसे तैसे उसे पैसे दिए और कुछ उधारी भी हो गई । उन्होंने इस दुर्घटना के बारे में अपने माता-पिता को कुछ नहीं बताया । हालांकि कुछ दिनों बाद अजीत की मां को साइकिल खराब होने का पता चल गया । उस दिन दोनों को एक बड़ा सबक जरूर मिल गया था।

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