काका की शादी! Kaka Ki Shadi!
काका की शादी! (हास्य कथा: प्रहलाद परिहार)
उस समय मैं कक्षा छठवीं या सातवीं में पढ़ता रहा होऊंगा जब मेरे काका की शादी हुई । उस समय मैं कोयला नगरी में पढ़ता था । पिताजी को नौकरी करते हुए कोई 10 साल हो गए होंगे । हमारा सारा परिवार शादी में आया हुआ था। बारात शाम चार - छह बजे बैल गाड़ियों के माध्यम से हमारे गांव से होने वाली काकी के गांव गई । बाकी की रस्में रात में होने वाली थी । सब तरफ जश्न का माहौल था ।
एक बड़ा सा घर था जहां शादी की सारी व्यवस्था थी । अब हम गए थे शहर से गांव! सो सोचते थे कि हम सबसे होशियार हैं । गांव के लड़कों को गवार समझ कर हिकारत भरी नजरों से देखते थे । उछल कूद करते हुए गांव के किसी लड़के का धक्का लग गया होगा । वह लड़का मुझसे लड़ने झगड़ने लगा । मैंने भी खूब रौब दिखाया और उससे धक्का-मुक्की करके जहां सब लोग खड़े थे वहां भाग आया । बड़े से घर के बीचो-बीच खुली जगह में शादी का कार्यक्रम चल रहा था । सभी लोग व्यस्त थे । वह लड़का मुझसे बदला लेने की फिराक में मेरे पीछे पीछे घूम रहा था । रात का समय था । पता नहीं उस समय मेरे सब दोस्त कहां थे ? क्योंकि मैं शहर में पढ़ता था इसलिए गांव में मेरे ज्यादा मित्र भी नहीं थे ।
अब देखिए ऐसा हुआ कि जिसकी मैं कल्पना भी नहीं कर सकता था । हालांकि मैं थोड़ा बदमाश था परंतु चालाक बिल्कुल नहीं था । गांव से शहर जाकर पढ़ने से मैं कुछ और सीधा हो गया था । एक अजनबी लड़का मेरे पास आया और मुझसे बातें करने लगा । बातों ही बातों में उसने मुझसे कहा कि वह लड़का मुझे परेशान कर रहा है । मैंने कहा हां यार वह तो मुझे भी परेशान कर रहा है । उस अजनबी लड़के ने कहा कि चलो उसे सबक सिखाते हैं । मुझे कोई शक नहीं हुआ। मैंने भी सोचा चलो साले को मजाक खाते हैं । डरता तो मैं किसी से था नही! उस लड़के ने कहा कि मैं अपने दोस्तों को लेकर आता हूं ।
इसके बाद वह लड़का मुझे शादी के उस स्थान से कुछ दूर एक सुनसान सड़क पर ले गया । इतने में कुछ और लड़के जिनको वह अपना दोस्त बता रहा था उस बदमाश लड़के को लेकर आए । इसके बाद उस अजनबी लड़के ने कहा "यही था ना वह लड़का जो तुम्हें परेशान कर रहा था।" मैंने कहा, " हां, यही था।" उस अजनबी लड़के ने एक लड़के से कहा," पकड़ लो रे साले को ।" उसकी इस बात पर एक लड़के ने उस बदमाश लड़के को पकड़ लिया । उस अजनबी लड़के ने मुझे कमर बेल्ट देते हुए कहा," मार साले को।" मैं इतना मूर्ख था कि अब तक मुझे कोई शक नहीं हुआ था कि यह सब इतनी आसानी से कैसे हो रहा है ?
मैं बेल्ट लेकर उसे मारने लगा । चांदनी रात थी। चारों तरफ सन्नाटा और हम चार-पांच लड़के । मैंने एक दो बेल्ट ही मारे होंगे कि उस अजनबी लड़के ने मुझे पीछे से पकड़ लिया। वह लड़का मुझसे जरा तगड़ा था । एक बार तो मैं हिल भी ना सका । उस बदमाश लड़के ने पलक झपकते ही मेरे हाथ से बेल्ट छीन लिया और कुटिल मुस्कान के साथ बोला," अबे तू मुझे मारेगा? अरे अक्ल के दुश्मन, मैंने ही तुझे यहां बुलाने के लिए यह सारा जाल बुना है। यह सब मेरे दोस्त हैं। आज तो तू गया बेटा काम से!" मैं उनके जाल में फस गया था । लेकिन मेरा दिमाग तेजी से काम कर रहा था । मैंने अपने आप को छुड़ाने की पूरी कोशिश की पर कामयाब नहीं हो सका । वह बदमाश लड़का मुझ पर तड़ा तड़ बेल्ट बरसाने लगा । बड़ी कठिन घड़ी थी । आखिरकार मैंने पूरी ताकत लगाई और झटके से अपने आप को छुड़ाकर वहां से भागा और जाकर अपने रिश्तेदारों के बीच में घुसकर बैठ गया ।
परंतु न जाने क्या सोचकर अपने बड़ों से उन लड़कों की शिकायत नहीं की । एक तो शादी का माहौल दूसरे अपनी इज्जत की भी बात थी कि गांव के लड़कों से पिट गए वह भी धोखे से! किसी को बताता तो अपनी ही मूर्खता जाहिर होती इसलिए चुप रहना ही बेहतर समझा । परंतु दिल में बदले की आग भड़क उठी थी । मन ही मन बड़ा बुरा लग रहा था कि बुद्धू बन गए ।
शादी की सारी रस्में होने के बाद सुबह-सुबह दुल्हन काकी की विदाई की गई । मुझे यह देख कर बड़ी खुशी हुई कि वह 4 लड़के भी एक बैलगाड़ी में बैठकर हमारे गांव बारात के साथ आ रहे थे । मैं तेजी से सोच रहा था कि उन लोगों से बदला कैसे लिया जाए ? जब मैंने अपने दोस्तों को बताया कि इन लोगों ने मुझे शादी में परेशान किया था तो वह भी मेरा साथ देने को तैयार हो गए । बारात हमारे गांव तक पहुंच चुकी थी ।
अगली सुबह जल्दी ही मैं अपने दोस्तों के साथ वहां गया जहां बारातियों की बैल गाड़ी खड़ी थी । मैंने उस बैलगाड़ी को पहचान लिया जिसमें बैठकर वह 4 लड़के आए थे । हम ने चुपके से उस बैलगाड़ी के पहिए की खिल्ली (वह लोहे की कील जो पहिए को एक्सेल में फंसाए रखती है) निकाल दी और उसकी जगह लकड़ी की कील लगा दी और वहां से दूर जाकर एक घर के आंगन में बिछी खाट पर सो गए ।
दुल्हन काकी की वापसी पर जब सब लोग अपनी अपनी बैलगाड़ी में बैठकर रवाना हुए तो हमने देखा कि वह चार लड़के उसी बैलगाड़ी में बैठे जिसमें हमने अपनी कलाकारी की थी । उस उत्सव जैसे माहौल में किसी का ध्यान ना तो गाड़ी की खिल्ली पर गया ना ही हम पर । जब सब विदा हो गए तो हमारे घर वाले भी अपने घर वापस आ गए। मैं और मेरे दोस्त बहुत खुश थे कि हमने अपना काम कर दिया था । बाद में पता चला कि कुछ दूर जाकर घाट में उस बैलगाड़ी की खिल्ली जो हम ने लगाई थी टूट गई और गिरने से वह चारों लड़के बुरी तरह घायल हुए थे। (समाप्त)

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