गर्मियों का चांद : कविता / Garmiyon Ka Chaand
17. गर्मियों का चांद ! (कविता : प्रहलाद परिहार)
गर्मियों में जब मैं छत पर होता हूं,
मच्छरदानी लगा कर आराम से सोता हूं।
चुपके से आसमान पर नजर आता है चांद,
मुझको प्यारे प्यारे सपने दिखाता है चांद।
सपने में जब मैं चांद पर होता हूं,
बिना टीवी के वहां बहुत बोर होता हूं ।
कोई रॉकेट तो कोई मिसाइल होता है,
मेरे दोस्तों में ही कोई स्माइल होता है ।
चांद के पार की दुनिया कैसी होगी?
क्या वहां भी मेरी ये भैंसी होगी?

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