कहानी : बेर के पेड़ का भूत ! Ber Ke Ped Ka Bhoot!
बेर के पेड़ का भूत! (कहानी : प्रहलाद परिहार)
बचपन में मैं बड़ा शरारती हुआ करता था। गांव के स्कूल जाते समय दोनों जेबों में मूंगफली भरकर ले जाता था। मां मुझे ग्राइप वाटर पिलाती थी । उसका स्वाद मुझे बड़ा अच्छा लगता था। एक दिन मैंने चुपके से देख लिया कि मां वह शीशी कौन से मटके में छुपाती थी । फिर जब मैं खाना खाने की छुट्टी में घर आया तो सब से नजरें बचाकर वह पूरी शीशी पी गया। इसी हड़बड़ाहट में ग्राइप वाटर की कुछ बूंदे मेरे कपड़ों पर भी गिर गई । जब मैं मामा के साथ बाहर जाने लगा तो मां ने देख लिया और मुझ पर चिल्लाते हुए मारने के लिए दौड़ी तो मैं सीधे स्कूल भाग गया । परंतु स्कूल से लौटने पर मेरी खूब धुलाई हुई। ऐसी अनेक यादें रह रह कर जेहन में आती रहती हैं। मन की गति अपार है ।
एक बार मां और मेरी मौसी हम बच्चों को छोड़कर गांव से 3 किलोमीटर दूर एक कस्बे में बाजार करने गई। मैं और मुझ से 1 साल बड़ी मेरी मौसी तथा उम्र में मुझसे छोटे मेरे दो मामा हम सब मिलकर दिन भर बाड़े में खेलते रहे। बड़े में बाउंड्री पर किनारे-किनारे सीताफल के पेड़ लगे हुए थे। हम सब उन्हीं पर खेलते रहे । शाम होते होते अचानक हमें क्या सूझा की हम एक छोटी सी मुर्गी को गेंद की तरह उछाल कर खेलने लगे। वह मुर्गी मां को किसी ने उपहार में दी थी। इतने में मां और मौसी बाजार से वापस आ गए । मां ने जब मुझे मुर्गी को उछलते हुए देखा तो उसके गुस्से का ठिकाना ना रहा । वह झाड़ू लेकर मुझे मारने के लिए दौड़ी। तब तक मंझली मौसी ने मुर्गी को पानी पिलाया और उसे हवा करने लगी। पर वह नन्ही सी जान हमारी मूर्खता की भेंट चढ़ गई। तब वह तूफान आया कि देखते ही बनता था। मां ने मुझे जमकर पीटा। साथ ही मा रोते भी जा रही थी। बड़ी मुश्किल से बड़ी मौसी ने मुझे उनसे छुड़ाया।
कुल 6 महीने मैं गांव के स्कूल गया होगा, परंतु बहुत सारी यादें उस समय उस स्कूल से जुड़ी हुई है । पहाड़ी की चोटी से कुछ नीचे स्थित वह स्कूल तो आज नहीं रहा पर वह चोटी पर स्थित माता का मंदिर अब पक्का बन रहा है। सरकार ने गांव के किनारे नया स्कूल भवन बना दिया है । स्कूल छोड़ने के बाद एक बार जब मैं शहर से गांव आया तो मामा के साथ मिलकर स्कूल चला गया और अपने पुराने साथियों के साथ जाकर बैठ गया । इतने में किसी ने कहा कि मुछड मा साहब आ रहे हैं तो मैं डर गया कि अब मैं इस स्कूल का विद्यार्थी नहीं रहा अगर मां साहब नाराज हो गए तो क्या होगा ? तो भैया मैं उठा और पहाड़ से नीचे की ओर सरपट दौड़ पड़ा । मुच्छड़ मासाब चिल्लाते ही रह गए, " अरे कहां भागा जा रहा है ?" एक समय था जब इसी स्कूल में हर शनिवार रामायण पाठ होता था । बड़े लड़के नदी से बाल्टी में पानी भरकर लाते थे और लड़कियां स्कूल की लिपाई करती थी । रामायण पाठ के बाद गुड़ का प्रसाद बांटा जाता था । बड़ा आनंद आता था। आज उस जगह पर खाली मैदान पड़ा है परंतु हमारी यादों में वह स्कूल आज भी यथावत है ।
एक बार मैं कुछ लड़कों के साथ खेतों में घूमने गया। वहां एक खेत के बीच एक बेर बेर का पेड़ था । पेड़ के चारों तरफ घास काट कर सफाई कर दी गई थी, परंतु पेड़ के फैलाव के बाहर की घास काफी ऊंची थी, हमारी ऊंचाई से भी ज्यादा । हम सभी लोग बेर बिनने लगे और बेर खाने में मस्त हो गए । तभी मैंने महसूस किया कि चारों ओर से बड़े-बड़े पत्थर आकर गिरने लगे थे। पहले एक पत्थर दिखा, फिर दूसरा, फिर तीसरा । पत्थर बड़े बड़े थे। जिन्हे कोई दूर से एक हाथ से फेंक नहीं सकता था। पत्थर फेंकने वाला कहीं नजर नहीं आ रहा था ना ही कोई आवाज वहां आ रही थी । पत्थर गिरने की आवाज भी नहीं आ रही थी । वह किसी इंसान का काम नहीं लगता था । मैंने अपने मित्रों को बताया । उन्हें भी कुछ समझ नहीं आ रहा था । हम सब डर गए, ऐसा लगा जैसे कोई हमें पकड़ लेना चाहता है । मैं जोर से चीखा," भागो रे .." सब लोग तेजी से भागने लगे। भागते समय हमने पीछे पलट कर भी नहीं देखा। ऐसा लग रहा था जैसे हम भाग तो रहे हैं पर आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं । गांव के पहले एक अमराई में पहुंचकर हमने सांस ली। हम सब रुक गए । वह पेड़ और खेत दूर छूट गया था । घर पहुंच कर हम लोगों ने इस बात की अन्य लोगों से चर्चा की और लोगों से जानना चाहा परंतु उन पत्थरों के बे आवाज गिरने का रहस्य आज तक समझ नहीं आया। सब कहते थे उस बेर के पेड़ में भूत था । (समाप्त)

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