चलते चलते यूं ही कोई मिल गया था.. (Meena Kumari aur Unki Shayari)
मीना कुमारी और उनकी शायरी : प्रहलाद परिहार
मीना कुमारी को न केवल उनके उन फैंस के द्वारा याद किया जायेगा जिन्होंने उनकी अदभुत फिल्मों को देखा है और उनकी यादों को संजोया है बल्कि उन्हें उस पीढ़ी के द्वारा भी याद किया जायेगा जो सिनेमा को प्यार करती है और जो अभिनय की कला को समझती है। वे एक महान अदाकारा थीं जो अपने पीछे अपने काम का एक अनंत खजाना छोड़ गयीं हैं जो आने वाली पीढ़ी की अभिनेत्रियों को अभिनय की ऊंचाई तक पहुँचने के लिए हमेशा प्रेरित करता रहेगा। उनका व्यक्तिगत जीवन चाहे कितना भी दुःखद रहा हो परन्तु एक अभिनेत्री के रूप में उनकी महानता कभी कम न होगी।
31 मार्च 1972 को उनकी मृत्यु के बाद से अब तक उन पर इतना कुछ लिखा जा चुका है कि उनके जीवन के लगभग सभी पहलु अब पाठकों के सामने आ चुके हैं। फिर भी मैं यहाँ उनके जीवन से जुड़े कुछ ऐसे पहलुओं पर बात करूँगा जिन पर लोगों ने कम ही बात की है। लोग तो सिर्फ कहते हैं वे एक शराबी थीं। इसलिए उन्हें क्यों याद किया जाय ? परन्तु ऐसा नहीं है - जहाँ एक तरफ उन्हें ट्रेजेडी क्वीन कहा गया तो डॉ राही मासूम रज़ा के द्वारा उन्हें निम्फोमानिएक यानि उत्कट कामुक स्त्री भी करार दिया गया जो हमेशा प्यासी ही रही। लेकिन कुछ लोगों लिए वे एक देवी थीं जिसकी मूर्ति उन लोगों ने अपने घरों में लगा रखी है जहाँ रोज उनकी पूजा भी होती है। वे वास्तव में क्या थीं यह अभी तक एक पहेली ही है। उनके चरित्र में हमें जीवन के अनेक पहलु देखने को मिलते हैं।
उन्हीं की आवाज़ में सुनिए : tukde tukde din beeta dhajji dhajji raat mili
वे एक सुन्दर चेहरे और दिलकश आवाज़ की मलिका थीं जिसमे एक अतुलनीय दर्द था। उनकी आवाज़ किसी भी अन्य अभिनेत्री से बहुत अलग थी। उनकी आवाज़ में वो दर्द था जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता। उनका चेहरा बहुत मासूम और प्यारा था। मुझे लगता है ये उनके कुछ विशेष गुण थे जिसने लाखों लोगों को उनसे प्यार करने और यहाँ तक कि उन्हें देवी के रूप में पूजने के लिए प्रेरित किया। ऐसी अनेक कहानियां हैं जो उनके बारे में कही जाती हैं। उनकी कुछ यादगार फ़िल्में हैं, जैसे - पाकीज़ा, साहेब बीवी और गुलाम, यहूदी, आज़ाद, फूल और पत्थर, मैं चुप रहूंगी, दिल एक मंदिर, सांझ और सवेरा, दिल अपना और प्रीत पराई, प्यार का सागर, और भी लगभग सत्तर फ़िल्में हैं जिनमें उन्होंने अपने अभिनय की अमिट छाप छोड़ी।
उन्होंने अभिनय तब शुरू किया जब वे मात्र चार साल की बच्ची थीं - एक यात्रा जो तब समाप्त हुई जब वह सिर्फ उनचालीसवें वर्ष में थीं। 35 साल के अपने कॅरिअर में उन्होंने कई अलग - अलग तरह की भूमिकाएं अत्यंत सफलता के साथ निभाईं। लेकिन एक भाव जो स्थाई तौर पर उनके साथ रहा, वह था - दुःख का भाव। यह कहानियां पहले ही कही जा चुकी हैं कि वह क्यों इतना उदास रहती थीं और किस तरह शराब पीकर उन्होंने अपने जीवन को असमय समाप्त कर लिया। इस सब का आरम्भ उनके बचपन से होता है जहाँ खिलौनों से खेलने की उम्र में उन्हें मजबूरी में सिनेमा में काम करना आरम्भ करना पड़ा। जहाँ उन्हें कोई सच्चा सुख न प्राप्त हुआ और न ही प्रेम। उन्हें हमेशा ऐसी परिस्थितियों का सामना करना पड़ा जहाँ वे कोई ठोस निर्णय नहीं ले पाई। उन्हें उनके अत्यंत भावुक स्वाभाव ने कठोर निर्णय लेने से रोके रखा। कोई पुरुष उन्हें सच्चा भावनात्मक सम्बल न दे सका और उनके पति भी उनकी मृत्यु के पश्चात् उनके एकमात्र फ्लैट को बिकने से बचाने को आगे नहीं आये जब इनकम टैक्स डिपार्टमेंट ने उसे नीलाम कर दिया जबकि उन्होंने मीना जी की फिल्मों से जबरदस्त पैसा कमाया था।
फिल्म पाकीज़ा के कुछ अभूतपूर्व दृश्य देखने के लिए आगे दी गई लिंक पर क्लिक करें : Scene from film "Pakeeza"
एक अतिविशिष्ट अभिनेत्री होने के अलावा वे एक कई अच्छे मानवीय गुणों की मालकिन भी थीं। उनमे अपने आस पास मौजूद लोगों और वस्तुओं के प्रति गहरी समझ और संवेदनशीलता थी। कोई स्कूली शिक्षा न प्राप्त करने के बावजूद वे एक अच्छी कवियत्री थीं और उनकी लेखनी उनके ह्रदय की कोमलता को जाहिर करती है। वे डायरी लिखा करती थीं और मानती थीं कि डायरी ही उनकी सच्ची दोस्त थी। इसके अतिरिक्त वे एक गायिका भी थीं। उन्होंने अपनी कुछ फिल्मों में गीत भी गाए हैं जैसे - ''पिया घर आ जा ... फिल्म - ''एक बार फिर कहीं '', और फिल्म '' बिछड़े बालम'' का गीत - आता है दिल में प्यार क्यों।" दोनों ही फ़िल्में रणजीत मूवीटोन के द्वारा बनाई गयीं थीं जिसके संगीतकार थे - बुलो सी रानी।
क्या हमारे लिए फिल्म ''बहु बेगम'', ''साहेब बीवी और गुलाम'', और फिल्म - ''पाकीज़ा '' की उस दुखी लड़की को भूलना संभव है ? जो ऊंचाई और गहराई मीना कुमारी ने अपने अभिनय में प्राप्त की थी वो किसी और अन्य अभिनेत्री के लिए प्राप्त करना असंभव है। उन्होंने अपनी फिल्मों में सभी तरह की भूमिकाएं निभाई जैसे - बड़ी बहन, भाभी, मां, बहु, पत्नी, प्रेमिका, यहाँ तक कि उन्होंने फिल्म - "मेरे अपने" में दादी की भूमिका भी निभाई। वे अपनी भूमिका में इतना डूब जाती थीं कि उनके लिए जल्दी से उस भूमिका से बाहर आना संभव नहीं होता था। इसी वजह से उनके वास्तविक जीवन में कुछ परेशानियां आ जाती थीं। यह कहा जा सकता है कि वह भगवान का एक कोमल और सुन्दर फूल थीं जिसे सावधानी से सुरक्षित रखने की जरुरत थी।
यद्धपि लेखिका और कवयित्री के तौर पर उन्हें ज्यादा पहचान नहीं मिली पर उनकी शेष स्मृतियों को हमें संजो कर रखना चाहिए। उन्होंने इतनी सारी कवितायेँ, शायरी, नज़्म, और ग़ज़ल लिखी हैं कि उनकी संवेदना और सुंदरता की व्याख्या में कई पन्ने भरे जा सकते हैं। उनकी एक मात्र किताब ''मीना कुमारी की शायरी '' प्रसिद्ध लेखक गुलज़ार के संपादन में हिन्द पॉकेट बुक्स द्वारा प्रकाशित की गई है। यह किताब उनकी 250 डायरियों के आधार पर तैयार की गयी है जो उन्हें मीना कुमारी की वसीयत के रूप में प्राप्त हुई थी। यह किताब दिखाती है कि वे एक उच्च स्तर की शायरा थीं। यह पुस्तक पाठकों को इस महान अभिनेत्री को और करीब से समझने में मदद करती है। इसे पढ़कर पता चलता है कि वे अपने जीवन में कितनी उदास और अकेली थीं। उन्होंने खय्याम के संगीत निर्देशन में अपना गाया एकमात्र रिकॉर्ड बनाया है - ''आई राइट आई रिसाइट'' जिसमे इस किताब की ग़ज़लों को उन्होंने स्वयं अपनी ही आवाज़ में पढ़ा है। यह 1971 ,में पॉलीडोर म्यूजिक कंपनी के द्वारा रिकॉर्ड किया गया था। यह रिकॉर्ड भी संग्रह करने लायक है। इसे सुनकर हम उन्हें महसूस कर सकते हैं, जहाँ वे गा रही हैं -
चाँद तन्हा है आसमां तनहा,
दिल मिला है कहाँ कहाँ तनहा।
राह देखा करेगा सदियों तक ,
छोड़ जायेंगे हम ये जहाँ तनहा।
बम्बई की एक गली और कई अस्पतालों के वार्डों का नाम अभिनेत्री नरगिस के नाम पर रखा गया है। एक चौक का नाम महान गायक मोहम्मद रफ़ी के नाम पर रखा गया है लेकिन मीना कुमारी के किसी स्मारक के बारे में अभी तक किसी ने नहीं सोचा। और यह कैसी विडम्बना है कि उनकी मृत्यु भी उस दिन हुई थी जिस दिन कभी ईसा मसीह को सूली पर चढ़ाया गया था। यह न केवल एक अभिनेत्री की मौत थी बल्कि यह अभिनय के एक पूरे युग का अंत था। उनका जन्म 1 अगस्त 1933 को बॉम्बे में ही हुआ था। उनके पिता का नाम मास्टर अली बक्स था जो भेरा (पाकिस्तान) से आये थे और उनकी माता का नाम प्रभावती देवी था जो ईसाई थीं और दोनों ही पारसी थिएटर में काम करते थे। वे एक नृत्यांगना थीं जो विवाह के बाद इक़बाल बानो बन गयीं। उनके पिता एक हारमोनियम वादक और शायर थे। कहा जाता है कि उनकी माता का संबंध टैगोर खानदान से था।
आइये मीना जी की लिखी हुई कुछ रचनाओं पर एक नज़र डालते हैं !




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