रोता बचपन! (Crying childhood and Money Race)
पैसे की दौड़ में मरता बचपन !
( बच्चे को यह सजा क्यों ?)
प्रहलाद परिहार
आज मेरे एक मित्र जो कि एक शिक्षक भी हैं उन्होंने मुझे एक सच्ची घटना सुनाई। उन्होंने बताया कि पिछले दिनों उनकी कक्षा में दो ऐसी घटनाएं हुईं जिसने उन्हें बहुत द्रवित कर दिया। यहाँ मैं यह बताता चलूँ कि वे शहर के एक बड़े प्रतिष्ठित स्कूल के जाने माने शिक्षक हैं। जहाँ ज्यादातर बड़े घरों के यानि पैसे वालों के बच्चे पढ़ते हैं। उन्होंने बताया कि वे पिछले दिनों एक क्लास में चौथी के बच्चों को कुछ पढ़ने लगा रहे थे। वे सभी बच्चे थोड़े कमजोर थे। बहुत देर तक पढ़ाने के बाद भी कोई संतोषजनक परिणाम नहीं मिल रहा था। तभी उन्होंने ध्यान दिया कि एक मोटा सा बच्चा खूब मस्ती कर रहा था और वह अचानक कुर्सी से गिर गया। मेरे मित्र को बड़ा गुस्सा आया। उन्होंने उसे डांटते हुए कहा क्या तुम को मम्मी पापा घर पर कुछ सिखाते नहीं ? वह बच्चा बोला,'' सर मैं घर पर रहता ही नहीं जो मुझे मम्मी पापा कुछ सिखाएं। '' इस पर मेरे मित्र ने पूछा तो तुम कहाँ रहते हो ? उसने कहा सर यहीं स्कूल के हॉस्टल में रहता हूँ। मेरे मित्र को बड़ा आश्चर्य हुआ हुआ, क्योंकि उनको जानकारी थी कि बच्चा पास के ही एक कसबे का है जहाँ स्कूल की बस रोज जाती है। उन्होंने पूछा कि तुम हॉस्टल में क्यों रहते हो ? तो उस बच्चे ने बताया कि उसके माता पिता दोनों अलग अलग जगह पर सरकारी नौकरी करते हैं। उसे कोई रखना नहीं चाहता। यहाँ तक कि उसके नाना नानी और दादा दादी भी यह जिम्मेदारी नहीं निभाना चाहते। कारण चाहे जो भी हो पर बच्चे का इसमें कोई कसूर नहीं। यह जानकर मेरे मित्र को बड़ा दुःख हुआ। उन्होंने उससे आगे पूछा,''क्या तुम्हे मम्मी की याद आती है ?" इस पर बच्चा जोर जोर से रोने लगा। मेरे मित्र की आँखे भी डबडबा आईं। उन्होंने उस से कहा बेटा मैं तुम्हारे हॉस्टल के सामने ही रहता हूँ जब भी तुम्हे घर की याद आये तुम मेरे पास चले आना।
दूसरी घटना उन्होंने बताई कि एक दूसरी क्लास में एक बच्चे ने टिफिन नहीं लाया था तो उन्होंने उस से पुछा तुम आज टिफिन क्यों नहीं लाये उस बच्चे ने जवाब दिया,'' वो चली गयी ना मेरा टिफिन बनाये बगैर। वो रोज ही ऐसा करती है। बस अपना तैयार होती है और चली जाती है। हम खाएं या ना खाये उसे क्या ?" मेरे मित्र को उसकी भाषा पर बड़ा आश्चर्य हुआ। उन्होंने पुछा,'' वो कौन ?" इस पर उस बच्चे ने कहा,'' वो मेरी मम्मी ! वो रोज ही ऐसा करती है। '' यह सब सुनकर मेरे मित्र आश्चर्य में पड़ गए। इस वक्त उस बच्चे की आँखों में अपनी माँ के प्रति नफरत साफ़ दिखाई दे रही थी। यहाँ भी बच्चे के माता पिता दोनों सरकारी नौकरी करते हैं। मैं भी ये बातें सुनकर सन्न था।
हम दोनों सोचने लगे कि ऐसा पैसा किस काम का ? जिन बच्चो के लिए आप कमा रहे हो , उन्हें इस से क्या दे रहे हो ? जिनको आप ने जन्म दिया उन्हें प्यार देना भी तो आपका ही कर्तव्य है। एक बार थोड़ा पैसा काम हो चलेगा लेकिन इनका बचपन अगर खो गया आपके बगैर तो क्या हासिल होगा ? यह तो अपने बच्चे के प्रति अन्याय है। अगर कोई वास्तविक मजबूरी है तो एक बार बच्चा भी समझ जायेगा। लेकिन ये तो पैसों की दौड़ है इस से कुछ हासिल नहीं होगा। बच्चे थोड़ा आभाव ख़ुशी ख़ुशी सेह लेंगे पर इस तरह बचपन में माता पिता के द्वारा दिए गए दुःख को वे जीवन भर नहीं भूल पाएंगे। बड़ा अफ़सोस होता है ऐसी बातें सुनकर। पैसों से प्यार नहीं ख़रीदा जा सकता। माना पैसा जरुरी है जीवन के लिए पर मियां बीवी और बच्चों का एक दूसरे के साथ रहना भी उतना ही जरुरी है। कम से कम दोनों में से किसी एक का साथ तो बच्चे को चाहिए ही।
ऐसे बच्चे आगे जा कर समाज में अच्छे नागरिक नहीं बन पाते। उन्हें रिश्तों पर विश्वास नहीं रहता। और माता पिता के प्रति प्रेम या सम्मान तो बिलकुल नहीं रहता। बल्कि नफरत जो उनके दिल में बचपन से पल रही है वह किसी न किसी विध्वंशक रूप में सामने आती है। जो समाज और उस बच्चे दोनों के लिए बहुत दुखदाई है। इस लेख को लिखने का उद्देश्य किसी को दुखी करना नहीं है बल्कि सचेत करना है कि यदि आप भी जाने अनजाने ऐसा कुछ कर रहे हों तो सावधान हो जाएँ। बचपन में बच्चों को सबसे बड़ी जरुरत है प्यार और देखभाल की। यदि माता पिता उनके साथ हैं तो वे अपने आप को सबसे सुखी महसूस करेंगे अन्यथा केवल पैसा ही दोगे तो वे भी आपको एक पैसा पाने की वस्तु से ज्यादा कुछ नहीं समझेंगे। और आपके बुढ़ापे में वे भी आपको केवल पैसा ही देंगे प्यार या देखभाल नहीं।


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ReplyDeleteपढ़ने और कॉमेंट करने के लिए धन्यवाद कृपया अपना नाम भी लिखें।
Deleteबहुत ही विचलित करने वाली बात बच्चों को हमेशा मां बाप की जरूरत होती है खासकर बचपन तो नींव होती है बच्चों की
ReplyDeleteThanks for reading and commenting, please write your name also. Please share it.
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