काव्यगाथा पत्रिका! Kavygatha 12 जनवरी 24
काव्यगाथा ऑनलाइन पत्रिका 11. विद्या निर्गुड़कर, बेतूल कविता---मेरे श्री राम ===///===///=.== हे मर्यादा पुरुषोत्तम राम महिमा तुम्हारी अपरंपार (2) (1)बाल अवस्था से ही तुमने,ऋशिमुनीयों के विग्घन हरे। मार असुरों को ,यज्ञ सफल किये तब, मुनियों और गुरू वशिष्ठ का बढाया था सम्मान । हे मर्यादा पुरुषोत्तम राम--- (2)कर माँ कैकयी के ,आदेश का पालन तुमने । किया राज्य गद्दी का त्याग ,और अपनाया था वनवास ।। कहा सभा में सबके आगे--रघुकुल रीत सदा चली आई, प्राण जाई पर वचन न जाई। तुम हो वही मर्यादा पुरुषोत्तम राम--- (3)केवट से विनती कर तुम बोले, लेचलो भाई हमें गंगा के उस पार । पर उसी केवट को तुमने लगा दिया भवसागर से पार ।। हे मर्यादा पुरुषोत्तम राम--- (4)घनघोर वन में ही बसा हुआ था, बूढी शबरी का अटूट विश्वास । आएंगे रघुवर इक दिन, चखेंगे मेरे हाथों, मीठे बेरोंका स्वाद। रखी मर्यादा उसके प्रेम की,खाए थे जूठे बेर,समझा था उसके मन का प्यार ।। हे मर्यादा पुरुषोत्तम राम--- (5)घनघोर वन में ही वर्षों से पडी थी,शिल...