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शुभ कामनाएं: बसंत पंचमी का महत्व! Importance of Basant Panchami

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बसंत पंचमी का ऐतिहासिक महत्त्व !                              यह बसंत ऋतु की पंचमी को मनाया जाता है, इसलिए इसे बसंत पंचमी कहते हैं।  इसे श्री पंचमी भी कहा जाता है। हिन्दु  लोग इस दिन विद्या की देवी सरस्वती की पूजा करते हैं।  इस दिन लोग पीले वस्त्र पहनते  हैं। हमारी प्राचीन संस्कृति में पुरे साल को छह ऋतुओं में बाटा  गया है।  बसंत हमारा सबसे पसंदीदा मौसम है क्योंकि इस मौसम में फूलों पर बहार आ जाती है, खेतों में फसलें जैसे सरसों , जौ , गेहूं , आदि की बालियां खिल उठती हैं। आमों के पेड़ों पर बौर यानि फूल आ जाते हैं। खट्टी मीठी , लाल पीली बेर पेड़ों पर लद  जाती हैं। हर तरफ रंग बिरंगी तितलियाँ और भँवरे मंडराने लगते हैं।  इस दिन विष्णु और कामदेव की पूजा होती है।                               सरस्वती देवी को बागीश्वरी , शारदा , भगवती , वीणावादिनी और वाग्देवी भी कहा जाता है। वे सृष्टि ...

मैं क्या हूं? : कविता / आशा ! Kavygatha Online Magazine 15/04/23

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काव्यगाथा ऑनलाइन मैगज़ीन  15  / 04 / 23  22. मैं क्या हूँ ? कविता : आशा मत पूछ मुझसे ये ज़िंदगी कि मैं क्या हूँ , समय के द्वारा लिखी हुई, उलझी हुई दास्तान हूँ।  तेरे साथ भी अकेली हूँ, तेरे बाद भी अकेली हूँ, तुझे समझ कर भी न बूझ सकी, ऐसी पहेली हूँ।  तमाशाई सी ये ज़िंदगी, जिसकी मैं खुद दर्शक हूँ, अपनी तकलीफों की, खुद ही चिकित्सक हूँ।  दर्द की ख्वाहिश हूँ, खुद की नुमाईश हूँ, बेजार सी है ज़िंदगी, जिसकी मैं फरमाईश हूँ।  अधूरी इमारतों का, जैसे कोई खँडहर हूँ, नाकाम इरादों का, घूमता हुआ बवंडर हूँ।  एक राज हूँ, एक साज हूँ, बदला हुआ अंदाज़ हूँ, जो गीत कभी सुना नहीं, मैं उसकी आवाज़ हूँ।  मत पूछ मुझसे ये ज़िंदगी कि मैं क्या हूँ, समय के द्वारा लिखी हुई, उलझी हुई दास्तान हूँ।   21.  ख्वाहिश !   कविता : पलक साबले, जबलपुर / बैतूल  हर शख्श की ख्वाहिश मुकम्मल हो जाती, तो क्या बात होती , ग़रीब के घर भी दौलत बेशुमार हो जाती, न आँखों में कभी नमी होती, न मुस्कराहट में कोई कमी होती।  घर में नयी किलकारी गुंजी,  माँ की आँखों में नमी थी...

शिव मंगल सिंह "सुमन"! : 10 Best Poems of Shivmangal Singh "Suman"

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 1. चलना हमारा काम है!  शिव मंगल सिंह "सुमन"  गति प्रबल पैरों में भरी, फिर क्यों रहूं दर दर खड़ा, जब आज मेरे सामने है रास्ता इतना पड़ा। जब तक न मंजिल पा सकूं , तब तक ना मुझे विराम है, चलना हमारा काम है। कुछ कह लिया, कुछ सुन लिया, कुछ बोझ अपना बंट गया, अच्छा हुआ, तुम मिल गईं, कुछ रास्ता ही कट गया। क्या राह में परिचय कहूं, राही हमारा नाम है, चलना हमारा काम है। जीवन अपूर्ण लिए हुए, पाता कभी खोता कभी, आशा निराशा से घिरा, हंसता कभी रोता कभी। गति - मती ना हो अवरुद्ध, इसका ध्यान आठों याम है, चलना हमारा काम है। इस विशद विश्व - प्रहार में, किसको नहीं बहना पड़ा, सुख - दुःख हमारी ही तरह, किसको नहीं सहना पड़ा। फिर व्यर्थ क्यों कहता फिरुं, मुझ पर विधाता वाम है, चलना हमारा काम है। मैं पूर्णता की खोज में, दर दर भटकता ही रहा, प्रत्येक पग पर कुछ ना कुछ रोड़ा अटकता ही रहा। निराशा क्यों मुझे? जीवन इसी का नाम है, चलना हमारा काम है। साथ में चलते रहे, कुछ बीच ही से फिर गए, गति ना जीवन की रूकी, जो गिर गए सो गिर गए। रहे हरदम, उसी की सफलता अभिराम है, चलना हमारा काम है। इसका ऑडियो/वीडियो सुनने एवं ...