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Kavygatha Online Magazine 19/11/24

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1. आशा "अंकनी", बैतूल          दर्द की इंतहा! कैसे बयां करें दर्द और तकलीफें, बताने के लिए शब्द नहीं जुबान पर, दर्द का एहसास है दिल की गहराईयों में , और तकलीफों की चुभन आसमान पर। कैसे बताएं कैसे समझाएं,अपना हाल, पहरे लगे हैं, बिखरे हुए अरमान पर , पाने को तो मंजिलें है कई जिंदगी में, पर अनदेखी पाबंदीयां हैं ऊंची उड़ान पर। जिंदगी अपनी होकर भी अपनी नहीं, किसी को तरस नहीं आता इस नादान पर, संभाल कर खुद को कैसे संभल जाएं , भरोसा भी नहीं रहा अब इस बेईमान पर। इंतहा हो गई है दर्द को सहने की, दिखाई दे जाता है दर्द हर निशान पर, गवाही देती है झुर्रियां बढ़ती उम्र की, जिम्मेदारियां रूकती नहीं थकान पर। शिकायतें जिंदगी से थमने लगी है अब, उम्मीदें जिंदा है खुद के एहसान पर, जो शब्द जुबान पर नहीं आ पाए,  वो कागज पर छप गए दिल के फरमान पर। तकलीफों का अंदाज ए बयां ऐसा ही है, खुदगर्जी का सुरूर छाया है इंसान पर, खुद की कहानी के खुद ही दर्शक हैं हम , न पटकथा, न अंजाम,  बस अभिनय छाया है जहान पर। 2. प्रतिभा द्विवेदी, भोपाल         हवाओं में कैसा असर! हव...